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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 506
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
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म꣣न्द्र꣡या꣢ सोम꣣ धा꣡र꣢या꣣ वृ꣡षा꣢ पवस्व देव꣣युः꣢ । अ꣢व्या꣣ वा꣡रे꣢भिरस्म꣣युः꣢ ॥५०६॥
स्वर सहित पद पाठम꣣न्द्र꣡या꣢ । सो꣣म । धा꣡र꣢꣯या । वृ꣡षा꣢꣯ । प꣣वस्व । देवयुः꣢ । अ꣡व्याः꣢꣯ । वा꣡रे꣢꣯भिः । अ꣣स्म꣢युः ॥५०६॥
स्वर रहित मन्त्र
मन्द्रया सोम धारया वृषा पवस्व देवयुः । अव्या वारेभिरस्मयुः ॥५०६॥
स्वर रहित पद पाठ
मन्द्रया । सोम । धारया । वृषा । पवस्व । देवयुः । अव्याः । वारेभिः । अस्मयुः ॥५०६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 506
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 2; मन्त्र » 10
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 4;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 2; मन्त्र » 10
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 4;
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पदार्थ -
(सोम) हे शान्तस्वरूप परमात्मन्! तू (वृषा) सुखवर्षक (देवयुः) पूर्ववर्ती जीवन्मुक्तों को चाहने वाला, तथा (अस्मयुः) इस समय के हम उपासकों को चाहने वाला (मन्द्रया धारया पवस्व) आनन्दकर धारा से प्राप्त हो (वारेभिः-अव्याः) पापवासना वारण करने वाले गुण-धर्म-कर्मों के द्वारा हमारी रक्षा कर।
भावार्थ - सुखवर्षक सोमरूप शान्त परमात्मा पुरातन जीवन्मुक्तों को चाहता हुआ तथा नूतन हम उपासकों को चाहता हुआ आनन्दप्रद धारा से प्राप्त हो और पापवासना निवारक गुण-धर्म-कर्मों के द्वारा हमारी रक्षा कर॥१०॥
विशेष - ऋषिः—असितः काश्यपः (द्रष्टा—ज्ञानी से सम्बद्ध अज्ञानमुक्त उपासक)॥<br>
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