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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 567
ऋषिः - चक्षुर्मानवः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
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प्र꣡ ध꣢न्वा सोम꣣ जा꣡गृ꣢वि꣣रि꣡न्द्रा꣢येन्दो꣣ प꣡रि꣢ स्रव । द्यु꣣म꣢न्त꣣ꣳ शु꣢ष्म꣣मा꣡ भ꣢र स्व꣣र्वि꣡द꣢म् ॥५६७॥

स्वर सहित पद पाठ

प्र꣢ । ध꣣न्व । सोम । जा꣡गृ꣢꣯विः । इ꣡न्द्रा꣢꣯य । इ꣣न्दो । प꣡रि꣢꣯ । स्र꣣व । द्युम꣡न्त꣢म् । शु꣡ष्म꣢꣯म् । आ । भ꣣र । स्वर्वि꣡द꣢म् । स्वः꣣ । वि꣡द꣢꣯म् ॥५६७॥


स्वर रहित मन्त्र

प्र धन्वा सोम जागृविरिन्द्रायेन्दो परि स्रव । द्युमन्तꣳ शुष्ममा भर स्वर्विदम् ॥५६७॥


स्वर रहित पद पाठ

प्र । धन्व । सोम । जागृविः । इन्द्राय । इन्दो । परि । स्रव । द्युमन्तम् । शुष्मम् । आ । भर । स्वर्विदम् । स्वः । विदम् ॥५६७॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 567
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 3; मन्त्र » 2
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 10;
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पदार्थ -
(इन्दो सोम) हे रसीले शान्तस्वरूप परमात्मन्! तू (प्रधन्व) प्राप्त हो (जागृविः) जगाने वाला—सचेत करने वाला—बुद्धि-विकास कराने वाला है। (इन्द्राय) आत्मा के लिये (परिस्रव) अमृतरूप में परिस्रवित हो (स्वर्विदम्) मोक्ष प्राप्त कराने वाले (द्युमन्तम्) तेजस्वी (शुष्मम्-आभर) बल को “शुष्मं बलनाम” [निघं॰ २.९] हमारे अन्दर आभरित कर।

भावार्थ - हे आनन्दरसभरे शान्तस्वरूप परमात्मन्! तू प्राप्त हो तथा सचेत करने वाला उपासक आत्मा के लिये अमृतरूप में स्रवित हो। मोक्ष प्राप्त कराने वाले तेजस्वीबल को हमारे अन्दर पूर्णरूप से भर दे॥२॥

विशेष - ऋषिः—चक्षुर्मानवः (मनु—मननशील होने में समर्थदृष्टिमान् उपासक)॥<br>

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