Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 638
ऋषिः - प्रस्कण्वः काण्वः
देवता - सूर्यः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - आरण्यं काण्डम्
4
उ꣡द्द्यामे꣢꣯षि꣣ र꣡जः꣢ पृ꣣थ्व꣢हा꣣ मि꣡मा꣢नो अ꣣क्तु꣡भिः꣢ । प꣢श्य꣣ञ्ज꣡न्मा꣢नि सूर्य ॥६३८॥
स्वर सहित पद पाठउ꣢त् । द्याम् । ए꣣षि । र꣡जः꣢꣯ । पृ꣣थु꣢ । अ꣡हा꣢꣯ । अ । हा꣣ । मि꣡मा꣢꣯नः । अ꣣क्तु꣡भिः꣢ । प꣡श्य꣢꣯न् । ज꣡न्मा꣢꣯नि । सू꣣र्य ॥६३८॥
स्वर रहित मन्त्र
उद्द्यामेषि रजः पृथ्वहा मिमानो अक्तुभिः । पश्यञ्जन्मानि सूर्य ॥६३८॥
स्वर रहित पद पाठ
उत् । द्याम् । एषि । रजः । पृथु । अहा । अ । हा । मिमानः । अक्तुभिः । पश्यन् । जन्मानि । सूर्य ॥६३८॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 638
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » 5; मन्त्र » 12
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 5;
Acknowledgment
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 3; दशतिः » 5; मन्त्र » 12
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 5;
Acknowledgment
पदार्थ -
(सूर्य) हे सरणशील—व्यापनशील परमात्मन्! तू (द्याम्) द्युलोक को (रजः) अन्तरिक्ष को “रजसः.....अन्तरिक्षलोकस्य” [निरु॰ १२.७] (पृथु) ठोस—पृथिवीपिण्ड को (अक्तुभिः-अहा) रात्रियों के साथ दिनों को—रात्रि-दिनों को (मिमानः) निर्माण करता हुआ (जन्मानि पश्यन्) हम जन्म पाने वालों को दृष्टि में रखने के हेतु (उदेषि) उत्साह से प्राप्त हो।
भावार्थ - व्यापनशील परमात्मा द्युलोक अन्तरिक्षलोक पृथिवीलोक—तीनों लोकों को तथा दिन-रातों को निर्माण करता हुआ हम जन्म पाने वालों पर कृपादृष्टि रखता हुआ उत्साह से प्राप्त होता है या हम जन्म पाने वालों पर कृपादृष्टि रखने के हेतु इन सबका निर्माण करता है जिससे हम भोग अपवर्ग पासकें अतः हमें उसकी उपासना करनी चाहिए॥१२॥
विशेष - <br>
इस भाष्य को एडिट करें