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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 733
ऋषिः - त्रिशोकः काण्वः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
इ꣣ह꣢ त्वा꣣ गो꣡प꣢रीणसं म꣣हे꣡ म꣢न्दन्तु꣣ रा꣡ध꣢से । स꣡रो꣢ गौ꣣रो꣡ यथा꣢꣯ पिब ॥७३३॥
स्वर सहित पद पाठइह꣢ । त्वा꣣ । गो꣡प꣢꣯रीणसम् । गो । प꣣रीणसम् । महे꣣ । म꣣न्दन्तु । रा꣡ध꣢꣯से । स꣡रः꣢꣯ । गौ꣣रः꣢ । य꣡था꣢꣯ । पि꣢ब ॥७३३॥
स्वर रहित मन्त्र
इह त्वा गोपरीणसं महे मन्दन्तु राधसे । सरो गौरो यथा पिब ॥७३३॥
स्वर रहित पद पाठ
इह । त्वा । गोपरीणसम् । गो । परीणसम् । महे । मन्दन्तु । राधसे । सरः । गौरः । यथा । पिब ॥७३३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 733
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 2; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 2; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
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पदार्थ -
(त्वा गोपरीणसम्) हे परमात्मन्! तुझ स्तुति-वाणियों से प्राप्त होने वाले अध्यात्म अन्न को “अन्नं वै परीणसम्” [जै॰ ३.१७४] (महे राधसे) महान् मोक्षैश्वर्य की प्राप्ति के लिए (मन्दन्तु) उपासकजन स्तुत करें—अर्चित करें “मदतिः-अर्चति कर्मा” [निघं॰ ३.१४] (गौरः-यथा सरः पिब) गौर हरिण जैसे सर—उदक जल तृप्ति से पीता है ऐसे उपासक के उपासनारस का पान कर।
भावार्थ - स्तुतियों से प्राप्त होने योग्य मोक्ष भोग वाले तुझ परमात्मा की मोक्षैश्वर्य के लिए उपासक अर्चना करते हैं, तू उनके अर्चना रूप आर्द्ररस को पूर्णरूप से पान कर॥३॥
विशेष - <br>
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