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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 756
ऋषिः - अवत्सारः काश्यपः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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अ꣣य꣡ꣳ सूर्य꣢꣯ इवोप꣣दृ꣢ग꣣य꣡ꣳ सरा꣢꣯ꣳसि धावति । स꣣प्त꣢ प्र꣣व꣢त꣣ आ꣡ दिव꣢꣯म् ॥७५६॥

स्वर सहित पद पाठ

अ꣣य꣢म् । सू꣡र्यः꣢꣯ । इ꣣व । उपदृ꣢क् । उ꣣प । दृ꣢क् । अ꣣य꣢म् । स꣡रा꣢꣯ꣳसि । धा꣣वति । स꣣प्त꣢ । प्र꣣व꣡तः꣢ । आ । दि꣡व꣢꣯म् ॥७५६॥


स्वर रहित मन्त्र

अयꣳ सूर्य इवोपदृगयꣳ सराꣳसि धावति । सप्त प्रवत आ दिवम् ॥७५६॥


स्वर रहित पद पाठ

अयम् । सूर्यः । इव । उपदृक् । उप । दृक् । अयम् । सराꣳसि । धावति । सप्त । प्रवतः । आ । दिवम् ॥७५६॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 756
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 16; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 5; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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पदार्थ -
(अयम्) यह ज्ञानप्रकाशस्वरूप परमात्मा (सूर्यः-इव-उपदृक्) सूर्य के समान स्पष्ट प्रकाशक है—साक्षात् प्रकाशमान है उपासकों के सम्मुख या हृदय में (अयम्) यह परमात्मा (सरांसि धावति) उपासकों के प्रार्थनावचनों को “सरः-वाङ् नाम” [निघं॰ १.११] प्राप्त होता है “धावति गतिकर्मा” [निघं॰ २.१४] (सप्त प्रवतः-आ दिवम्) परिचरणशील—उपासनाशील “सपति परिचरणकर्मा” [निघं॰ ३.५] नम्र स्तुतिकर्ताओं को अमृतधाम—मोक्ष तक पहुँचाता है।

भावार्थ - प्रकाशस्वरूप परमात्मा उपासकों के प्रति सूर्य के समान साक्षात् प्रकाशमान होता है उनके प्रार्थनावचनों को स्वीकार करता है तथा हृदय में नम्र स्तुति करने वाले उन उपासकों को मोक्षधाम तक पहुँचाता है अपनाता है॥२॥

विशेष - <br>देवता—पवमानः सोमः (शान्तस्वरूप परमात्मा)॥

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