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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 761
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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उ꣡प꣢ शिक्षापत꣣स्थु꣡षो꣢ भि꣣य꣢स꣣मा꣡ धे꣢हि꣣ श꣡त्र꣢वे । प꣡व꣢मान वि꣣दा꣢ र꣣यि꣢म् ॥७६१॥

स्वर सहित पद पाठ

उ꣡प꣢꣯ । शि꣣क्ष । अपतस्थु꣡षः꣢ । अ꣣प । तस्थु꣡षः꣢ । भि꣣य꣡स꣢म् । आ । धे꣣हि । श꣡त्र꣢꣯वे । प꣡व꣢꣯मान । वि꣣दाः꣢ । र꣣यि꣢म् ॥७६१॥


स्वर रहित मन्त्र

उप शिक्षापतस्थुषो भियसमा धेहि शत्रवे । पवमान विदा रयिम् ॥७६१॥


स्वर रहित पद पाठ

उप । शिक्ष । अपतस्थुषः । अप । तस्थुषः । भियसम् । आ । धेहि । शत्रवे । पवमान । विदाः । रयिम् ॥७६१॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 761
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 18; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 5; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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पदार्थ -
(पवमान) हे आनन्दधारा में आने वाले परमात्मन्! तू (अपतस्थुषः) मेरे अन्दर अन्यथा स्थित दोषों के प्रति (उपशिक्ष) (शत्रवे भियसम्-आधेहि) मेरे अन्तःस्थल को नष्ट करने वाले काम आदि शत्रु के लिए मेरे अन्दर भय बिठा (रयिं विदा) अपना स्वरूपैश्वर्य अनुभव करा।

भावार्थ - आनन्दधारा में आनेवाला परमात्मा उपासक के अन्दर अन्यथा स्थित दोषों के प्रति घृणा कराता है काम आदि शत्रु सदृश भावों के प्रति भय दिलाता है और अपने स्वरूपैश्वर्य का अनुभव कराता है॥१॥

विशेष - ऋषिः—असितो देवलो वा (कामबन्धन से रहित या परमात्मदेव को जीवन में लाने धारण करने वाला उपासक)॥ देवता—सोमः (शान्तस्वरूप परमात्मा)॥ छन्दः—गायत्री॥<br>

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