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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 836
ऋषिः - कविर्भार्गवः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
7
तं꣡ त्वा꣢ नृ꣣म्णा꣢नि꣣ बि꣡भ्र꣢तꣳ स꣣ध꣡स्थे꣢षु म꣣हो꣢ दि꣣वः꣢ । चा꣡रु꣢ꣳ सुकृ꣣त्य꣡ये꣢महे ॥८३६॥
स्वर सहित पद पाठत꣢म् । त्वा꣣ । नृम्णा꣡नि꣢ । बि꣡भ्र꣢꣯तम् । स꣣ध꣡स्थे꣢षु । स꣣ध꣡ । स्थे꣣षु । महः꣢ । दि꣣वः꣢ । चा꣡रु꣢꣯म् । सु꣣कृत्य꣡या꣢ । सु꣣ । कृत्य꣡या꣢ । ई꣣महे ॥८३६॥
स्वर रहित मन्त्र
तं त्वा नृम्णानि बिभ्रतꣳ सधस्थेषु महो दिवः । चारुꣳ सुकृत्ययेमहे ॥८३६॥
स्वर रहित पद पाठ
तम् । त्वा । नृम्णानि । बिभ्रतम् । सधस्थेषु । सध । स्थेषु । महः । दिवः । चारुम् । सुकृत्यया । सु । कृत्यया । ईमहे ॥८३६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 836
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
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पदार्थ -
(तं त्वा) हे सोम—शान्तस्वरूप परमात्मन्! उस तुझे (नृम्णानि बिभ्रतम्) उपासकनरों के नमाने वाले सुखसाधनों के धारण करते हुए को (महः-दिवः) महान् मोक्षधाम के समानस्थानों—सुखस्थानों में (चारुं सुकृत्यया-ईमहे) चरणशील व्यापने वाले सुन्दर को हम उपासना से चाहते हैं सङ्गति में चाहते हैं।
भावार्थ - महान् मोक्षधाम के समानस्थानों में उपासकजनों को झुकाने वाले धनों के धारण करने वाले उस तुझ व्यापनशील सुन्दर परमात्मा को उपासना से प्राप्त करना चाहते हैं॥१॥
विशेष - ऋषिः—कविः (क्रान्तदर्शी उपासक)॥ देवता—पवमानः सोमः (आनन्दधारा में प्राप्त होने वाला शान्तस्वरूप परमात्मा)॥ छन्दः—गायत्री॥<br>
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