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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 921
ऋषिः - दृढच्युत आगस्त्यः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
6
प꣡व꣢मान धि꣣या꣢ हि꣣तो꣡३ऽभि꣢꣫ योनिं꣣ क꣡नि꣢क्रदत् । ध꣡र्म꣢णा वा꣣यु꣢मारु꣢꣯हः ॥९२१॥
स्वर सहित पद पाठप꣡व꣢꣯मान । धि꣣या꣢ । हि꣣तः꣢ । अ꣣भि꣢ । यो꣡नि꣢꣯म् । क꣡नि꣢꣯क्रदत् । ध꣡र्म꣢꣯णा । वा꣣यु꣢म् । आ । अ꣣रुहः ॥९२१॥
स्वर रहित मन्त्र
पवमान धिया हितो३ऽभि योनिं कनिक्रदत् । धर्मणा वायुमारुहः ॥९२१॥
स्वर रहित पद पाठ
पवमान । धिया । हितः । अभि । योनिम् । कनिक्रदत् । धर्मणा । वायुम् । आ । अरुहः ॥९२१॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 921
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
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पदार्थ -
(पवमान) हे आनन्दधारा में प्राप्त होने वाले परमात्मन्! (धिया हितः) ध्यान धारणा द्वारा धारा ध्याया हुआ (योनिं कनिक्रदत्) मिलने वाले—मिलने-समागम के पात्र उपासक को क्लयाणप्रवचन करता हुआ*67 (धर्मणा वायुम्-आरुहः) मोक्षधर्म के हेतु आयु को*68 ऊपर आरोपित कर॥३॥
टिप्पणी -
[*67. “कनिक्रदत् प्रब्रुवाणः” [निरु॰ ९.३]।] [*68. “आयुर्वा एष यद् वायुः” [ऐ॰ आ॰ २.४.३]।]
विशेष - <br>
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