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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 925
ऋषिः - बृहन्मतिराङ्गिरसः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
आ꣡ योनि꣢꣯मरु꣣णो꣡ रु꣢ह꣣द्ग꣢म꣣दि꣢न्द्रो꣣ वृ꣡षा꣢ सु꣣त꣢म् । ध्रु꣣वे꣡ सद꣢꣯सि सीदतु ॥९२५॥
स्वर सहित पद पाठआ । यो꣡नि꣢꣯म् । अ꣣रुणः꣢ । रु꣣हत् । ग꣡म꣢꣯त् । इ꣡न्द्रः꣢꣯ । वृ꣡षा꣢꣯ । सु꣣त꣢म् । ध्रु꣣वे꣢ । स꣡द꣢꣯सि । सी꣡द꣢꣯तु ॥९२५॥
स्वर रहित मन्त्र
आ योनिमरुणो रुहद्गमदिन्द्रो वृषा सुतम् । ध्रुवे सदसि सीदतु ॥९२५॥
स्वर रहित पद पाठ
आ । योनिम् । अरुणः । रुहत् । गमत् । इन्द्रः । वृषा । सुतम् । ध्रुवे । सदसि । सीदतु ॥९२५॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 925
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 12; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 4; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 12; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 4; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
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पदार्थ -
(अरुणः) आरोचन—समन्त प्रकाशमान सोम—शान्तस्वरूप परमात्मा*71 (योनिम्-आरुहत्) मिलने वाले—मिलने के इच्छुक उपासक में आ बैठा—आ बैठता है तब (वृषा-इन्द्रः सुतम्-आगमत्) इन्द्रियों का प्रेरक आत्मा स्वयं सोम की ओर उस साक्षात् हुए की ओर झुक जाता है। पुनः ध्रुवस्थान में विराजित हो जाता है॥२॥
टिप्पणी -
[*71. “अरुण आरोचनः” [निरु॰ ५.२०]।]
विशेष - <br>
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