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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 960
ऋषिः - कश्यपो मारीचः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
8
ज꣣ज्ञानो꣡ वाच꣢꣯मिष्यसि꣣ प꣡व꣢मान꣣ वि꣡ध꣢र्मणि । क्र꣡न्दन् दे꣣वो꣡ न सूर्यः꣢꣯ ॥९६०॥
स्वर सहित पद पाठजज्ञानः꣢ । वा꣡च꣢꣯म् । इ꣣ष्यसि । प꣡व꣢꣯मान । वि꣡ध꣢꣯र्मणि । वि । ध꣣र्मणि । क्र꣡न्द꣢꣯न् । दे꣣वः꣢ । न । सू꣡र्यः꣢꣯ ॥९६०॥
स्वर रहित मन्त्र
जज्ञानो वाचमिष्यसि पवमान विधर्मणि । क्रन्दन् देवो न सूर्यः ॥९६०॥
स्वर रहित पद पाठ
जज्ञानः । वाचम् । इष्यसि । पवमान । विधर्मणि । वि । धर्मणि । क्रन्दन् । देवः । न । सूर्यः ॥९६०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 960
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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पदार्थ -
(पवमान) हे धारारूप में प्राप्त होने वाले परमात्मन्! तू (विधर्मणि जज्ञानः) विशेष उपासनाधर्मी उपासक के हृदय में प्रकट हुआ (वाचम्-इष्यसि) स्तुति वाणी को प्राप्त होता है*8 (क्रन्दन् देवः-न सूर्यः) मानो सूर्य अपने को प्रकाश से घोषित करता हुआ आता है ऐसे तू भी आनन्दधारा द्वारा घोषित करता हुआ आता है॥३॥
टिप्पणी -
[*8. “इष गतौ” [दिवादि॰]।]
विशेष - <br>
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