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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 991
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - इन्द्राग्नी छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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इ꣡न्द्रा꣢ग्नी यु꣣वा꣢मि꣣मे꣢३ऽभि꣡ स्तोमा꣢꣯ अनूषत । पि꣡ब꣢तꣳ शम्भुवा सु꣣त꣢म् ॥९९१॥

स्वर सहित पद पाठ

इ꣡न्द्रा꣢꣯ग्नी । इ꣡न्द्र꣢꣯ । अग्नी꣣इ꣡ति꣢ । यु꣣वा꣢म् । इ꣣मे꣢ । अ꣣भि꣢ । स्तो꣡माः꣢꣯ । अ꣣नूषत । पि꣡ब꣢꣯तम् । श꣣म्भुवा । शम् । भुवा । सुत꣢म् ॥९९१॥


स्वर रहित मन्त्र

इन्द्राग्नी युवामिमे३ऽभि स्तोमा अनूषत । पिबतꣳ शम्भुवा सुतम् ॥९९१॥


स्वर रहित पद पाठ

इन्द्राग्नी । इन्द्र । अग्नीइति । युवाम् । इमे । अभि । स्तोमाः । अनूषत । पिबतम् । शम्भुवा । शम् । भुवा । सुतम् ॥९९१॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 991
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 3; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
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पदार्थ -
(शम्भुवा-इन्द्राग्नी युवाम्) हे कल्याण को भावित करने वाले ऐश्वर्यवन् तथा प्रकाशस्वरूप परमात्मन्! तुम्हें (इमे स्तोताः-अभि-अनूषत) ये स्तुतिसमूह बहुत स्तुतिरूप में प्रस्तुत हैं*65 (सुतं पिबतम्) निष्पन्न उपासनारस को पान करो—स्वीकार करो॥१॥

विशेष - ऋषिः—भरद्वाजः (अमृत अन्न भोग को धारण करने वाला)॥ देवता—इन्द्राग्नी (ऐश्वर्यवान् तथा ज्ञानप्रकाशवान् परमात्मा)॥ छन्दः—गायत्री॥<br>

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