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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1050
ऋषिः - हिरण्यस्तूप आङ्गिरसः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
8
प꣡वी꣢तारः पुनी꣣त꣢न꣣ सो꣢म꣣मि꣡न्द्रा꣢य꣣ पा꣡त꣢वे । अ꣡था꣢ नो꣣ व꣡स्य꣢सस्कृधि ॥१०५०॥
स्वर सहित पद पाठप꣡वी꣢꣯तारः । पु꣣नीत꣡न꣢ । पु꣣नी꣢त । ꣣न । सो꣡म꣢꣯म् । इ꣡न्द्रा꣢꣯य । पा꣡त꣢꣯वे । अ꣡थ꣢꣯ । नः । व꣡स्य꣢꣯सः । कृ꣣धि ॥१०५०॥
स्वर रहित मन्त्र
पवीतारः पुनीतन सोममिन्द्राय पातवे । अथा नो वस्यसस्कृधि ॥१०५०॥
स्वर रहित पद पाठ
पवीतारः । पुनीतन । पुनीत । न । सोमम् । इन्द्राय । पातवे । अथ । नः । वस्यसः । कृधि ॥१०५०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1050
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 4
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 4
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 4; मन्त्र » 4
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 4
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Meaning -
O sages, harbingers of purity, purify and enhance the soma spirit of peace and joy for Indra, the growth of power, protection and excellence of the world and thus make us happy and prosperous more and ever more. (Rg. 9-4-4)