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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1062
ऋषिः - जमदग्निर्भार्गवः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
4

अ꣣भि꣡ गव्या꣢꣯नि वी꣣त꣡ये꣢ नृ꣣म्णा꣡ पु꣢ना꣣नो꣡ अ꣢र्षसि । स꣣न꣡द्वा꣢जः꣣ प꣡रि꣢ स्रव ॥१०६२॥

स्वर सहित पद पाठ

अ꣣भि꣢ । ग꣡व्या꣢꣯नि । वी꣣त꣡ये꣢ । नृ꣣म्णा꣢ । पु꣣नानः꣢ । अ꣣र्षसि । सन꣡द्वा꣢जः । स꣣न꣢त् । वा꣣जः । प꣡रि꣢꣯ । स्र꣣व ॥१०६२॥


स्वर रहित मन्त्र

अभि गव्यानि वीतये नृम्णा पुनानो अर्षसि । सनद्वाजः परि स्रव ॥१०६२॥


स्वर रहित पद पाठ

अभि । गव्यानि । वीतये । नृम्णा । पुनानः । अर्षसि । सनद्वाजः । सनत् । वाजः । परि । स्रव ॥१०६२॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1062
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 6; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 2; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
Acknowledgment

Meaning -
O Soma, exciting peace, pleasure and excellence of the human nation, you move for ward, pure, purifying and glorified, to achieve the wealth of lands and cows, culture and literature, and the jewels of human excellence for lasting peace and well being. Go on ever forward, creating, winning and giving food and fulfilment for the body, mind and soul of the collective personality. (Rg. 9-62-23)

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