Loading...

सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 1310
ऋषिः - शतं वैखानसाः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
5

प꣡व꣢मानस्य꣣ जि꣡घ्न꣢तो꣣ ह꣡रे꣢श्च꣣न्द्रा꣡ अ꣢सृक्षत । जी꣣रा꣡ अ꣢जि꣣र꣡शो꣢चिषः ॥१३१०॥

स्वर सहित पद पाठ

प꣡व꣢꣯मानस्य । जि꣡घ्न꣢꣯तः । ह꣡रेः꣢꣯ । च꣣न्द्राः꣢ । अ꣣सृक्षत । जीराः꣢ । अ꣣जिर꣡शो꣢चिषः । अ꣣जिर꣢ । शो꣣चिषः ॥१३१०॥


स्वर रहित मन्त्र

पवमानस्य जिघ्नतो हरेश्चन्द्रा असृक्षत । जीरा अजिरशोचिषः ॥१३१०॥


स्वर रहित पद पाठ

पवमानस्य । जिघ्नतः । हरेः । चन्द्राः । असृक्षत । जीराः । अजिरशोचिषः । अजिर । शोचिषः ॥१३१०॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 1310
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 9; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
Acknowledgment

Meaning -
Beauteous manifestations and brilliant radiations of eternal light and power of lord creator, destroyer of want and suffering, dispeller of darkness and negation, ever active and constantly flowing, pure and purifying, come into existence and flow according to divine plan and the cosmic model. (Rg. 9-66-25)

इस भाष्य को एडिट करें
Top