Loading...

सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 655
ऋषिः - कश्यपो मारीचः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
3

हि꣣न्वानो꣢ हे꣣तृ꣡भि꣢र्हि꣣त꣡ आ वाजं꣢꣯ वा꣣꣬ज्य꣢꣯क्रमीत् । सी꣡द꣢न्तो व꣣नु꣡षो꣢ यथा ॥६५५॥

स्वर सहित पद पाठ

हि꣣न्वानः꣢ । हे꣣तृ꣡भिः꣢ । हि꣣तः꣢ । आ । वा꣡जम्꣢꣯ । वा꣣जी꣢ । अ꣣क्रमीत् । सी꣡द꣢꣯न्तः । व꣣नु꣡षः꣢ । य꣣था ॥६५५॥


स्वर रहित मन्त्र

हिन्वानो हेतृभिर्हित आ वाजं वाज्यक्रमीत् । सीदन्तो वनुषो यथा ॥६५५॥


स्वर रहित पद पाठ

हिन्वानः । हेतृभिः । हितः । आ । वाजम् । वाजी । अक्रमीत् । सीदन्तः । वनुषः । यथा ॥६५५॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 655
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
Acknowledgment

Meaning -
Just as a warrior spurred on by ambition and love of victory rushes to the field and wins the battle, and just as ardent yajakas sit on the vedi and win their object of yajna, so does the soul assisted by senses, mind and intelligential vision win the target of its meditation on Om, the presence of divinity. (Rg. 9-64-29)

इस भाष्य को एडिट करें
Top