Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 25/ मन्त्र 41
    ऋषिः - गोतम ऋषिः देवता - यज्ञो देवता छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    5

    चतु॑स्त्रिꣳशद्वा॒जिनो॑ दे॒वब॑न्धो॒र्वङ्क्री॒रश्व॑स्य॒ स्वधि॑तिः॒ समे॑ति।अच्छि॑द्रा॒ गात्रा॑ व॒युना॑ कृणोतु॒ परु॑ष्परुरनु॒घुष्या॒ वि श॑स्त॥४१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    चतु॑स्त्रिꣳश॒दिति॒ चतुः॑ऽत्रिꣳशत्। वा॒जिनः॑। दे॒वब॑न्धो॒रिति॑ दे॒वऽब॑न्धोः॒। वङ्क्रीः॑। अश्व॑स्य। स्वधि॑ति॒रिति॒ स्वऽधि॑तिः। सम्। ए॒ति॒। अच्छि॑द्रा। गात्रा॑। व॒युना॑। कृ॒णो॒तु॒। परु॑ष्परुः। परुः॑परु॒रिति॒ परुः॑ऽपरुः। अ॒नु॒घुष्येत्य॑नु॒ऽघुष्य॑। वि। श॒स्त॒ ॥४१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    चतुस्त्रिँशद्वाजिनो देवबन्धोर्वङ्क्रीरश्वस्य स्वधितिः समेति । अच्छिद्रा गात्रा वयुना कृणोत परुष्परुरनुघुष्या विशस्त ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    चतुस्त्रिꣳशदिति चतुःऽत्रिꣳशत्। वाजिनः। देवबन्धोरिति देवऽबन्धोः। वङ्क्रीः। अश्वस्य। स्वधितिरिति स्वऽधितिः। सम्। एति। अच्छिद्रा। गात्रा। वयुना। कृणोतु। परुष्परुः। परुःपरुरिति परुःऽपरुः। अनुघुष्येत्यनुऽघुष्य। वि। शस्त॥४१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 25; मन्त्र » 41
    Acknowledgment

    भाषार्थ -
    हे मनुष्यो ! जैसे अश्वशिक्षक--(देवबन्धोः) विद्वान् जिसके बन्धु के समान हैं उस (वाजिनः) वेगवान् (अश्वस्य) घोड़े की (चतुस्त्रिंशत्) ३४ चौंतीस शिक्षात्मक (वङ्क्री:) कुटिल गतियों को (समेति) सम्यक् प्राप्त करता है; और (अच्छिद्रा) दोष रहित (गात्रा) गात्रों=शरीरों को एवं (वयुना) प्रज्ञानों को (कृणोतु)सिद्ध करता है; उसके (परुष्परु:) प्रत्येक मर्म स्थल को (अनुघुष्य) अनुकूल घोषित करके (स्वधितिः) वज्र के समान रोगों को तुम (विशस्त) काटो ॥ २५ । ४१॥

    भावार्थ - हे मनुष्यो ! जैसे चतुर अश्व शिक्षक ३४ चौंतीस विचित्र गतियाँ घोड़े को सिखलाता है; और वैद्य उसे नीरोग करता है, वैसे ही अन्य पशुओं की रक्षा से उन्नति करो ॥ ४१ ॥

    भाष्यसार - अश्व आदि की रक्षा--अश्व-शिक्षक विद्वान् देवों के बन्धु, वेगवान् अश्व की ३४ चौंतीस शिक्षात्मक कुटिल गतियों को जानें। उक्त विचित्र गतियों से अश्व को शिक्षित करें। वैद्य अश्व को दोष रहित शरीर वाला अर्थात् रोग रहित करे। अश्व विषयक प्रज्ञान को प्राप्त करे। उसके प्रत्येक मर्म को यथावत् घोषित करके वज्र के समान रोगों का छेदन करे । सब मनुष्य अश्व आदि के समान अन्य पशुओं की भी रक्षा से उन्नति करें ॥ २५ । ४१॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top