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  • यजुर्वेद - अध्याय 8/ मन्त्र 24
    ऋषिः - अत्रिर्ऋषिः देवता - गृहपतिर्देवता छन्दः - आर्षी त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    अ॒ग्नेरनी॑कम॒पऽआवि॑वेशा॒पां नपा॑त् प्रति॒रक्ष॑न्नसु॒र्यम्। दमे॑दमे स॒मि॑धं यक्ष्यग्ने॒ प्रति॑ ते जि॒ह्वा घृ॒तमुच्च॑रण्य॒त् स्वाहा॑॥२४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒ग्नेः। अनी॑कम्। अ॒पः। आ। वि॒वे॒श॒। अ॒पाम्। नपा॑त्। प्र॒ति॒रक्ष॒न्निति॑ प्रति॒ऽरक्ष॑न्। अ॒सु॒र्य्य᳖म्। दमे॑दम॒ इति॒ दमे॑ऽदमे। स॒मिध॒मिति॑ स॒म्ऽइध॑म्। य॒क्षि॒। अ॒ग्ने॒। प्रति॑। ते॒। जि॒ह्वा। घृ॒तम्। उत्। च॒र॒ण्य॒त्। स्वाहा॑ ॥२४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्नेरनीकमपऽआ विवेशापान्नपात्प्रतिरक्षन्नसुर्यम् । दमेदमे समिधँ यक्ष्यग्ने प्रति ते जिह्वा घृतमुच्चरण्यत्स्वाहा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अग्नेः। अनीकम्। अपः। आ। विवेश। अपाम्। नपात्। प्रतिरक्षन्निति प्रतिऽरक्षन्। असुर्य्यम्। दमेदम इति दमेऽदमे। समिधमिति सम्ऽइधम्। यक्षि। अग्ने। प्रति। ते। जिह्वा। घृतम्। उत्। चरण्यत्। स्वाहा॥२४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 8; मन्त्र » 24
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    भाषार्थ -
    हे [अग्ने] विज्ञानवान् गृहस्थ पुरुष ! तू (अग्नेः) अग्नि की (अनीकम्) सेना के समान ज्वालाओं में और (अपः) जलों में (आविवेश) प्रवेश कर, इनके तत्त्व को जान। तू (अपाम्) सुख-प्राप्ति के साधन जलों का (नपात्) रक्षक होकर (असुर्यम्) मेघ, प्राण क्रीड़ा और धनवानों के पास विद्यमान जल-द्रव्य की (प्रतिरक्षन्) पालना करता हुआ (दमे दमे) जनों के शान्ति के स्थान प्रत्येक घर में (समिधम्) पदार्थों के प्रकाशक अग्नि के प्रदीपन से (यक्षि) संयुक्त है। (ते) तेरी (जिह्वा) रसना (घृतम्) घी को और (स्वाहा) सत्यभाषण से (उत्-चरण्यत्) चरण के समान सर्वत्र गति को प्राप्त हो ॥

    भावार्थ - अग्नि और जल सब सांसारिक पदार्थों के कारण हैं, इसलिये गृहस्थ जन विशेषकर इनके गुणों को जानकर,घर के सब कार्यों को सत्य व्यवहार से सिद्ध करें ।। ८ । २४ ।।

    भाष्यसार - गृहस्थ राजा और प्रजा के लिये उपदेश--विज्ञानवान् गृहस्थ को योग्य है कि वह सेना के समान ज्वालाओं वाली अग्नि में तथा जल में विज्ञान से प्रवेश करे अर्थात् उनके गुणों को जानकर उनका उपयोग करे, क्योंकि अग्नि और जल सांसारिक पदार्थों के मुख्य हेतु हैं। जलों का रक्षक गृहस्थ मेघों में विद्यमान जल की रक्षा करे, जनता के प्राणों की रक्षा करे, धनवानों के द्रव्यों की रक्षा करे। प्रत्येक घर में पदार्थों को प्रकाशित करने वाली अग्नि से यज्ञ करे। गृहस्थ की रसना घृत में विचरण करे तथा सत्यभाषण से निर्बाध सर्वत्र व्यवहार करे ।।८।२४ ।।

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