यजुर्वेद - अध्याय 8/ मन्त्र 43
ऋषिः - कुसुरुविन्दुर्ऋषिः
देवता - पत्नी देवता
छन्दः - आर्षी पङ्क्तिः
स्वरः - पञ्चमः
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इडे॒ रन्ते॒ हव्ये॒ काम्ये॒ चन्द्रे॒ ज्योतेऽदि॑ते॒ सर॑स्वति॒ महि॒ विश्रु॑ति। ए॒ता ते॑ऽअघ्न्ये॒ नामा॑नि दे॒वेभ्यो॑ मा सु॒कृतं॑ ब्रूतात्॥४३॥
स्वर सहित पद पाठइडे॑। रन्ते॑। हव्ये॑। काम्ये॑। चन्द्रे॑। ज्योते॑। अदि॑ते। सर॑स्वति। महि॑। विश्रु॒तीति॒ विऽश्रु॑ति। ए॒ता। ते॒। अ॒घ्न्ये॒। नामा॑नि। दे॒वेभ्यः॑। मा॒। सु॒कृत॒मिति॒ सु॒ऽकृ॑तम्। ब्रू॒ता॒त् ॥४३॥
स्वर रहित मन्त्र
इडे रन्ते हव्ये काम्ये चन्द्रे ज्योते दिते सरस्वति महि विश्रुति । एता ते अघ्न्ये नामानि देवेभ्यो मा सुकृतम्ब्रूतात् ॥
स्वर रहित पद पाठ
इडे। रन्ते। हव्ये। काम्ये। चन्द्रे। ज्योते। अदिते। सरस्वति। महि। विश्रुतीति विऽश्रुति। एता। ते। अघ्न्ये। नामानि। देवेभ्यः। मा। सुकृतमिति सुऽकृतम्। ब्रूतात्॥४३॥
विषय - प्रकारान्तर से गृहस्थ के कर्म में पत्नी विषयक फिर उपदेश किया है ।।
भाषार्थ -
हे (अघ्न्ये) हनन=तिरस्कार के अयोग्य, (अदिते) आत्म-स्वरूप से अविनाशिनी, (ज्योते) सुशीलता से प्रकाशमान, (इडे) स्तुति के योग्य (हव्ये) स्वीकार करने योग्य, (काम्ये) कामना के योग्य, (रन्ते) रमण करने के योग्य, (चन्द्रे) आह्लादित करने वाली, (विश्रुति) विविध श्रवणों से युक्त अर्थात् सुप्रसिद्ध (महि) पूज्यतम (सरस्वति) प्रशंसनीय सर=विज्ञान वाली, पत्नी ! (ते) तेरे (एता) ये (नामानि) गौणिक नाम हैं, अतः तू (देवेभ्यः) दिव्य गुण वाले विद्वानों से शिक्षा को प्राप्त हुई (मा) मुझे (सुकृतम्) उत्तम कर्त्तव्य कर्म का (ब्रूतात्) उपदेश कर ॥ ८ । ४३ ।।
भावार्थ - जो विद्वान् पुरुषों से शिक्षा को प्राप्त हुई विदुषी स्त्री हो वह यथोक्त शिक्षा से सबको शिक्षित करे, जिससे सब स्त्रियाँ अधर्म मार्ग में प्रवृत्त न हों, स्त्री-पुरुष परस्पर विद्या की वृद्धि करें, अपने पुत्रों और कन्याओं को शिक्षित करें ॥ ८ । ४३ ।।
प्रमाणार्थ -
इस मन्त्र की व्याख्या शत० (४ । ५ । ८ । १०) में की गई है ।। ८ । ४३ ।।
भाष्यसार - गृहस्थ कर्म में पत्नी-विषयक उपदेश--तिरस्कार के अयोग्य होने से पत्नी का नाम 'अघ्न्या' है। आत्म-स्वरूप से अविनाशी होने से 'अदिति', सुशीलता से प्रकाशित होने से 'ज्योता', स्तुति के योग्य होने से 'इडा', कामना करने के योग्य होने से 'काम्या', रमण करने योग्य होने से 'रन्ता', चित्त के लिये आह्लादकारी होने से 'चन्द्रा', बहुश्रुत होने से 'विश्रुति', पूज्यतम होने से 'मही', प्रशस्त विज्ञान वाली होने से पत्नी का नाम 'सरस्वती' है। पति अपनी पत्नी से कहता है कि हे पत्नि ! तेरे ये गौणिक नाम हैं। तूने दिव्य गुणों वाले विद्वानों से शिक्षा को प्राप्त किया है। इसलिये यथोक्त शिक्षा से मुझे शिक्षित कर। सब स्त्रियों को शिक्षित कर, जिससे वे अधर्म मार्ग में प्रवृत्त न हों। हम दोनों परस्पर विद्या की वृद्धि करके अपने पुत्रों और कन्याओं को शिक्षित करें ॥ ८ । ४३ ।।
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