ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 20/ मन्त्र 4
युवा॑ना पि॒तरा॒ पुनः॑ स॒त्यम॑न्त्रा ऋजू॒यवः॑। ऋ॒भवो॑ वि॒ष्ट्य॑क्रत॥
स्वर सहित पद पाठयुवा॑ना । पि॒तरा॑ । पुन॒रिति॑ । स॒त्यऽम॑न्त्राः । ऋ॒जू॒ऽयवः॑ । ऋ॒भवः॑ । वि॒ष्टी । अ॒क्र॒त॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
युवाना पितरा पुनः सत्यमन्त्रा ऋजूयवः। ऋभवो विष्ट्यक्रत॥
स्वर रहित पद पाठयुवाना। पितरा। पुनरिति। सत्यऽमन्त्राः। ऋजूऽयवः। ऋभवः। विष्टी। अक्रत॥
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 20; मन्त्र » 4
अष्टक » 1; अध्याय » 2; वर्ग » 1; मन्त्र » 4
अष्टक » 1; अध्याय » 2; वर्ग » 1; मन्त्र » 4
भावार्थ - जी माणसे आळस सोडून सत्य, प्रेमाने स्वीकारून नम्र व बुद्धिमान असतात, तीच अग्नी, जल इत्यादी पदार्थांपासून उपकार घेण्यासाटी समर्थ असतात. ॥ ४ ॥
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