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ऋग्वेद मण्डल - 2 के सूक्त 6 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 6/ मन्त्र 8
    ऋषिः - सोमाहुतिर्भार्गवः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    स वि॒द्वाँ आ च॑ पिप्रयो॒ यक्षि॑ चिकित्व आनु॒षक्। आ चा॒स्मिन्त्स॑त्सि ब॒र्हिषि॑॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । वि॒द्वान् । आ । च॒ । पि॒प्र॒यः॒ । यक्षि॑ । चि॒कि॒त्वः॒ । आ॒नु॒षक् । आ । च॒ । अ॒स्मिन् । स॒त्सि॒ । ब॒र्हिषि॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स विद्वाँ आ च पिप्रयो यक्षि चिकित्व आनुषक्। आ चास्मिन्त्सत्सि बर्हिषि॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः। विद्वान्। आ। च। पिप्रयः। यक्षि। चिकित्वः। आनुषक्। आ। च। अस्मिन्। सत्सि। बर्हिषि॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 6; मन्त्र » 8
    अष्टक » 2; अध्याय » 5; वर्ग » 27; मन्त्र » 8

    भावार्थ - हे माणसांनो! या जगात व्याप्त, प्रिय पदार्थ देणारा, सर्वज्ञ, अंतर्यामी ईश्वर आहे, त्याचीच तुम्ही उपासना करा. ॥ ८ ॥

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