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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 14 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 14/ मन्त्र 1
    ऋषिः - सुतम्भर आत्रेयः देवता - अग्निः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    अ॒ग्निं स्तोमे॑न बोधय समिधा॒नो अम॑र्त्यम्। ह॒व्या दे॒वेषु॑ नो दधत् ॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒ग्निम् । स्तोमे॑न । बो॒ध॒य॒ । स॒म्ऽइ॒धा॒नः । अम॑र्त्यम् । ह॒व्या । दे॒वेषु॑ । नः॒ । द॒ध॒त् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्निं स्तोमेन बोधय समिधानो अमर्त्यम्। हव्या देवेषु नो दधत् ॥१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अग्निम्। स्तोमेन। बोधय। सम्ऽइधानः। अमर्त्यम्। हव्या। देवेषु। नः। दधत् ॥१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 14; मन्त्र » 1
    अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 6; मन्त्र » 1

    भावार्थ - हे माणसांनो ! प्रयत्नपूर्वक अग्नी इत्यादी पदार्थांची विद्या प्राप्त करा. ॥ १ ॥

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