Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 34 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 34/ मन्त्र 1
    ऋषिः - संवरणः प्राजापत्यः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अजा॑तशत्रुम॒जरा॒ स्व॑र्व॒त्यनु॑ स्व॒धामि॑ता द॒स्ममी॑यते। सु॒नोत॑न॒ पच॑त॒ ब्रह्म॑वाहसे पुरुष्टु॒ताय॑ प्रत॒रं द॑धातन ॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अजा॑तऽशत्रुम् । अ॒जरा॑ । स्वः॑ऽवती । अनु॑ । स्व॒धा । अमि॑ता । द॒स्मम् । ई॒य॒ते॒ । सु॒नोत॑न । पच॑त । ब्रह्म॑ऽवाहसे । पु॒रु॒ऽस्तु॒ताय॑ । प्र॒ऽत॒रम् । द॒धा॒त॒न॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अजातशत्रुमजरा स्वर्वत्यनु स्वधामिता दस्ममीयते। सुनोतन पचत ब्रह्मवाहसे पुरुष्टुताय प्रतरं दधातन ॥१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अजातऽशत्रुम्। अजरा। स्वःऽवती। अनु। स्वधा। अमिता। दस्मम्। ईयते। सुनोतन। पचत। ब्रह्मऽवाहसे। पुरुऽस्तुताय। प्रऽतरम्। दधातन ॥१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 34; मन्त्र » 1
    अष्टक » 4; अध्याय » 2; वर्ग » 3; मन्त्र » 1

    भावार्थ - हे माणसांनो! जो वैररहित, अत्यंत उत्तम गुणांनी युक्त, सर्वांचा हितकर्ता पुरुष अथवा स्त्री असतात त्या दोघांचाही निरंतर सत्कार करावा. ॥ १ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top