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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 66 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 66/ मन्त्र 1
    ऋषिः - रातहव्य आत्रेयः देवता - मित्रावरुणौ छन्दः - भुरिगुष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    आ चि॑कितान सु॒क्रतू॑ दे॒वौ म॑र्त रि॒शाद॑सा। वरु॑णाय ऋ॒तपे॑शसे दधी॒त प्रय॑से म॒हे ॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । चि॒कि॒ता॒न॒ । सु॒क्रतू॒ इति॑ सु॒ऽक्रतू॑ । दे॒वौ । म॒र्त॒ । रि॒शाद॑सा । वरु॑णाय । ऋ॒तऽपे॑शसे । द॒धी॒त । प्रय॑से म॒हे ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ चिकितान सुक्रतू देवौ मर्त रिशादसा। वरुणाय ऋतपेशसे दधीत प्रयसे महे ॥१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ। चिकितान। सुक्रतू इति सुऽक्रतू। देवौ। मर्त। रिशादसा। वरुणाय। ऋतऽपेशसे। दधीत। प्रयसे। महे ॥१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 66; मन्त्र » 1
    अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 4; मन्त्र » 1

    भावार्थ - जो विद्वानांबरोबर संगती करून बुद्धी वाढवितो तोच विद्वान असतो. ॥ १ ॥

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