Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 54 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 54/ मन्त्र 10
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - पूषा छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    परि॑ पू॒षा प॒रस्ता॒द्धस्तं॑ दधातु॒ दक्षि॑णम्। पुन॑र्नो न॒ष्टमाज॑तु ॥१०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    परि॑ । पू॒षा । प॒रस्ता॑त् । हस्त॑म् । द॒धा॒तु॒ । दक्षि॑णम् । पुनः॑ । नः॒ । न॒ष्टम् । आ । अ॒ज॒तु॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    परि पूषा परस्ताद्धस्तं दधातु दक्षिणम्। पुनर्नो नष्टमाजतु ॥१०॥

    स्वर रहित पद पाठ

    परि। पूषा। परस्तात्। हस्तम्। दधातु। दक्षिणम्। पुनः। नः। नष्टम्। आ। अजतु ॥१०॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 54; मन्त्र » 10
    अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 20; मन्त्र » 5

    भावार्थ - या जगात जो देणारा असतो तो उत्तम असतो. जो घेतो तो अधम असतो व जो चोरी करतो व प्राप्ती करतो तो निकृष्ट असतो, हे जाणा. ॥ १० ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top