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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 31 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 31/ मन्त्र 1
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्र: छन्दः - विराड्गायत्री स्वरः - षड्जः

    प्र व॒ इन्द्रा॑य॒ माद॑नं॒ हर्य॑श्वाय गायत। सखा॑यः सोम॒पाव्ने॑ ॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । वः॒ । इन्द्रा॑य । माद॑नम् । हरि॑ऽअश्वाय । गा॒य॒त॒ । सखा॑यः । सो॒म॒ऽपाव्ने॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र व इन्द्राय मादनं हर्यश्वाय गायत। सखायः सोमपाव्ने ॥१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र। वः। इन्द्राय। मादनम्। हरिऽअश्वाय। गायत। सखायः। सोमऽपाव्ने ॥१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 31; मन्त्र » 1
    अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 15; मन्त्र » 1

    भावार्थ - जे मित्र आपल्या मित्रांना आनंद देतात तेच (खरे) मित्र असतात. ॥ १ ॥

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