Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 34 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 34/ मन्त्र 2
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - भुरिगार्चीगायत्री स्वरः - षड्जः

    वि॒दुः पृ॑थि॒व्या दि॒वो ज॒नित्रं॑ शृ॒ण्वन्त्यापो॒ अध॒ क्षर॑न्तीः ॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि॒दुः । पृ॒थि॒व्याः । दि॒वः । ज॒नित्र॑म् । शृ॒ण्वन्ति॑ । आपः॑ । अध॑ । क्षर॑न्तीः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विदुः पृथिव्या दिवो जनित्रं शृण्वन्त्यापो अध क्षरन्तीः ॥२॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विदुः। पृथिव्याः। दिवः। जनित्रम्। शृण्वन्ति। आपः। अध। क्षरन्तीः ॥२॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 34; मन्त्र » 2
    अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 25; मन्त्र » 2

    भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे मेघमंडळातून जल वेगाने पृथ्वीवर येते व प्रजा आनंदित होते तसे ज्या कन्या अध्यापिकांकडून भूगर्भविद्या इत्यादी प्राप्त करून पतींना निरंतर सुख देतात त्या अत्यंत श्रेष्ठ असतात. ॥ २ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top