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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 109 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 109/ मन्त्र 1
    ऋषिः - अग्नयो धिष्ण्या ऐश्वराः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - भुरिगार्चीगायत्री स्वरः - षड्जः

    परि॒ प्र ध॒न्वेन्द्रा॑य सोम स्वा॒दुर्मि॒त्राय॑ पू॒ष्णे भगा॑य ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    परि॑ । प्र । ध॒न्व॒ । इन्द्रा॑य । सो॒म॒ । स्वा॒दुः । मि॒त्राय॑ । पू॒ष्णे । भगा॑य ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    परि प्र धन्वेन्द्राय सोम स्वादुर्मित्राय पूष्णे भगाय ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    परि । प्र । धन्व । इन्द्राय । सोम । स्वादुः । मित्राय । पूष्णे । भगाय ॥ ९.१०९.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 109; मन्त्र » 1
    अष्टक » 7; अध्याय » 5; वर्ग » 20; मन्त्र » 1

    भावार्थ - परमात्मा उद्योगी व कर्मयोग्यासाठी नाना प्रकारची मधुर फळे उत्पन्न करतो. अर्थात्, सर्व प्रकारचे ऐश्वर्य व धर्म, काम, मोक्ष या फळांचा भोक्ता कर्मयोगी व उद्योगी ही होऊ शकतो, इतर नव्हे. त्यासाठी पुरुषाला कर्मयोगी व उद्योगी बनले पाहिजे. ॥१॥

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