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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 450
ऋषिः - बन्धुः सुबन्धुः श्रुतबन्धुर्विप्रबन्धुश्च क्रमेण गोपायना लौपायना वा
देवता - इन्द्रः
छन्दः - द्विपदा गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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वि꣡श्व꣢स्य꣣ प्र꣡ स्तो꣢भ पु꣣रो꣢ वा꣣ स꣡न्यदि꣢꣯ वे꣣ह꣢ नू꣣न꣢म् ॥४५०
स्वर सहित पद पाठवि꣡श्व꣢꣯स्य । प्र । स्तो꣢भ । पुरः꣢ । वा꣣ । स꣢न् । य꣡दि꣢꣯ । वा꣣ । इह꣢ । नू꣣न꣢म् ॥४५०॥
स्वर रहित मन्त्र
विश्वस्य प्र स्तोभ पुरो वा सन्यदि वेह नूनम् ॥४५०
स्वर रहित पद पाठ
विश्वस्य । प्र । स्तोभ । पुरः । वा । सन् । यदि । वा । इह । नूनम् ॥४५०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 450
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 2; मन्त्र » 4
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 11;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 2; मन्त्र » 4
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 11;
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Mazmoon - سب کے سہارے جگت کے کھمبے
Lafzi Maana -
پرمیشور دیو! آپ سب کو تھامے ہوئے جگت کے کھمبے کی طرح ایک ہی سہارا ہیں، پہلے بھی آپ نے ہی سنبھال رکھا تھا اور اب بھی آپ ہی سارے سنسار کو سنبھالے ہوئے ہیں۔
Tashree -
آپ ہی ہو تھمب دُنیا کے سہارے آپ ہو، پہلے تھے آدھار جیسے اب بھی ویسے آپ ہو۔
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