ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 101/ मन्त्र 16
व॒चो॒विदं॒ वाच॑मुदी॒रय॑न्तीं॒ विश्वा॑भिर्धी॒भिरु॑प॒तिष्ठ॑मानाम् । दे॒वीं दे॒वेभ्य॒: पर्ये॒युषीं॒ गामा मा॑वृक्त॒ मर्त्यो॑ द॒भ्रचे॑ताः ॥
स्वर सहित पद पाठव॒चः॒ऽविद॑म् । वाच॑म् । उ॒त्ऽई॒रय॑न्तीम् । विश्वा॑भिः । धी॒भिः । उ॒प॒ऽतिष्ठ॑मानाम् । दे॒वीम् । दे॒वेभ्यः॑ । परि॑ । आ॒ऽई॒युषी॑म् । गाम् । आ । मा॒ । अ॒वृ॒क्त॒ । मर्त्यः॑ । द॒भ्रऽचे॑ताः ॥
स्वर रहित मन्त्र
वचोविदं वाचमुदीरयन्तीं विश्वाभिर्धीभिरुपतिष्ठमानाम् । देवीं देवेभ्य: पर्येयुषीं गामा मावृक्त मर्त्यो दभ्रचेताः ॥
स्वर रहित पद पाठवचःऽविदम् । वाचम् । उत्ऽईरयन्तीम् । विश्वाभिः । धीभिः । उपऽतिष्ठमानाम् । देवीम् । देवेभ्यः । परि । आऽईयुषीम् । गाम् । आ । मा । अवृक्त । मर्त्यः । दभ्रऽचेताः ॥ ८.१०१.१६
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 101; मन्त्र » 16
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 8; मन्त्र » 6
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 8; मन्त्र » 6
पदार्थ -
जो (वचोविदम्) वेदितव्य को बताने वाली है; (वाचम्) वाक् शक्ति को (उदीरयन्तीम्) प्रेरित कर प्रकट रूप में लाती है; (विश्वाभिः) सभी (धीभिः) बुद्धिमानों द्वारा (उपतिष्ठमानाम्) सेवित की जा रही है; (देवीम्) ज्ञान के द्वारा सकल पदार्थों का स्पष्ट बोध कराने वाली है--उस (गाम्) वेदवाणी को जो (देवेभ्यः) विद्वानों से (मा) मुझे (पर्येयुषीम्) प्राप्त हुई है; उसे (दभ्रचेताः) कम समझ (मर्त्यः) मानव ही (आवृक्त) छोड़ देता है।॥१६॥
भावार्थ - व्यक्त तथा अव्यक्त बोलने वाले सकल प्राणियों की वाक्शक्ति वेदवाणी से ही प्रेरित है; विश्व में जो भी वेदितव्य है उसे यह जतलाती है--इसीलिये बुद्धिमान् इसका ज्ञान प्राप्त करते हैं। वह मानव नासमझ ही होगा जो इसे छोड़ देता है॥१६॥ अष्टम मण्डल में एकसौएकवाँ सूक्त व आठवाँ वर्ग समाप्त॥
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