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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 69 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 69/ मन्त्र 11
    ऋषिः - प्रियमेधः देवता - विश्वेदेवाः, वरुणः छन्दः - पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः

    अपा॒दिन्द्रो॒ अपा॑द॒ग्निर्विश्वे॑ दे॒वा अ॑मत्सत । वरु॑ण॒ इदि॒ह क्ष॑य॒त्तमापो॑ अ॒भ्य॑नूषत व॒त्सं सं॒शिश्व॑रीरिव ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अपा॑त् । इन्द्रः॑ । अपा॑त् । अ॒ग्निः । विश्वे॑ । दे॒वाः । अ॒म॒त्स॒त॒ । वरु॑णः । इत् । इ॒ह । क्ष॒य॒त् । तम् । आपः॑ । अ॒भि । अ॒नू॒ष॒त॒ । व॒त्सम् । सं॒शिश्व॑रीःऽइव ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अपादिन्द्रो अपादग्निर्विश्वे देवा अमत्सत । वरुण इदिह क्षयत्तमापो अभ्यनूषत वत्सं संशिश्वरीरिव ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अपात् । इन्द्रः । अपात् । अग्निः । विश्वे । देवाः । अमत्सत । वरुणः । इत् । इह । क्षयत् । तम् । आपः । अभि । अनूषत । वत्सम् । संशिश्वरीःऽइव ॥ ८.६९.११

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 69; मन्त्र » 11
    अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 7; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    (तम्) उस सोम का (इन्द्रः अपात्) ऐश्वर्य का साधक जीवात्मा, राजा आदि पान करता है। (अग्निः) ज्ञान साधक इसे ग्रहण करता है; (विश्वेदेवाः) सभी दिव्यगुणों का आधान करने वाली शक्तियाँ (अमत्सत) इसके पान से हर्ष पाती हैं; (वरुणः इत्) न्याय व स्नेह भावनाओं की प्रतीक दिव्य शक्ति (इह क्षयत्) इस सोम में ही बसती है--इसी पर आश्रित है; (आपः) सद्गुण प्राप्त करने वाले साधक उस सोम के अभि, (अनूषत) गुणगान करें ऐसे ही जैसे कि (सं शिश्वरीः) गर्व से फूली [माताएँ] (वत्सम्) अपने प्रिय शिशु की प्रशंसा करती हैं॥११॥

    भावार्थ - परमात्मा द्वारा ये ही नाना दुःखनाशक हैं--रोग आदि नाशक हैं; सारा भूत होने से भी 'सोम' है। न्याय प्रेम आदि शुभ भावनाएँ भी 'सोम' हैं। इस तरह सांसारिक पदार्थ विभिन्न रूप से मानव को सुखी कर इन्द्र आदि पदवाच्य बनाते हैं॥११॥ (उत्पन्न पदार्थों का नाम ही 'सोम' है।)

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