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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 126 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 126/ मन्त्र 7
    ऋषिः - रोमशा ब्रह्मवादिनी देवता - विद्वाँसः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    उपो॑प मे॒ परा॑ मृश॒ मा मे॑ द॒भ्राणि॑ मन्यथाः। सर्वा॒हम॑स्मि रोम॒शा ग॒न्धारी॑णामिवावि॒का ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उप॑ऽउप । मे॒ । परा॑ । मृ॒श॒ । मा । मे॒ । द॒भ्राणि॑ । म॒न्य॒थाः॒ । सर्वा॑ । अ॒हम् । अ॒स्मि॒ । रो॒म॒शा । ग॒न्धारी॑णाम्ऽइव । अ॒वि॒का ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उपोप मे परा मृश मा मे दभ्राणि मन्यथाः। सर्वाहमस्मि रोमशा गन्धारीणामिवाविका ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उपऽउप। मे। परा। मृश। मा। मे। दभ्राणि। मन्यथाः। सर्वा। अहम्। अस्मि। रोमशा। गन्धारीणाम्ऽइव। अविका ॥ १.१२६.७

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 126; मन्त्र » 7
    अष्टक » 2; अध्याय » 1; वर्ग » 11; मन्त्र » 7

    पदार्थ -
    १. गतमन्त्र का ऋषि 'स्वनय भावयव्य' था जो अपना प्रणयन स्वयं करता है । वह इन्द्रियों व मन से सञ्चालित नहीं होता तथा भाव व चिन्तन को अपने साथ मिलानेवालों में [यु] उत्तम है[य] । उसने वेदवाणी का महत्त्व समझकर उसका ग्रहण करने का निश्चय किया । प्रस्तुत मन्त्र में वेदवाणी कहती है कि हे स्वनय भावयव्य | (उप उप मे परामश) = तू समीपता से मेरा आलिङ्गन कर । सूक्ष्मता से विचार करना ही इसका आलिङ्गन है [परामर्श - विचार] । जितनी सूक्ष्मता से इसका विचार किया जाए उतना ही उत्तम है । वेदवाणी कहती है (मा) = मत (मे) = मेरी (दभ्राणि) = अल्पता को (मन्यथाः) = मान और समझ । यह मत समझ कि मेरे शब्द कम अर्थवाले हैं । इनका अर्थ-गाम्भीर्य तो सूक्ष्म विचार से ही ज्ञात हो पाएगा । २. (अहम्) = मैं (सर्वा अस्मि) = पूर्ण हूँ, सब सत्यविद्याओं की प्रकाशिका हूँ । मुझमें (रोमशा) = ज्ञानजल का निवास है [रोम - water] .२ और (गन्धारीणाम्) = वेदवाणी का धारण करनेवालों की मैं अविका (इव) = रक्षिका के समान हूँ । मुझसे रक्षित होकर व्यक्ति वासनाओं से आक्रान्त नहीं होता । ज्ञान का व्यसन अन्य सब व्यसनों से बचाने का साधन हो जाता है । ३. इस रोमशा वेदवाणी का अध्ययन करनेवाली ब्रह्मवादिनी का नाम भी रोमशा हो गया है । यही इस मन्त्र की ऋषिका है ।

    भावार्थ - भावार्थ - जितनी सूक्ष्मता से हम विचार करेंगे, उतना ही वेदार्थ की गूढ़ता को समझ पाएँगे । यह वेदवाणी सब सत्यविद्याओं की प्रकाशिका है ।

    - विशेष - सूक्त के प्रारम्भ में कहा है कि प्रभुस्तवन से मैं वासनाओं से अहिंसित जीवनवाला बनता हूँ [१] । समासि पर कहा है कि प्रभु से दी गई यह वेदवाणी अपने धारण करनवालों का रक्षण करती है [७] । इस वेदज्ञान के देनेवाले प्रभु का मनन करता हुआ दैवोदासः - उस देव का अनन्यभक्त परुच्छेप - पर्व - पर्व में निर्माणात्मक शक्ति का सञ्चार करनेवाला बनकर प्रार्थना करता है - पीक विमा योजना एकोनविंशोऽनुवाकः -

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