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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 50 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 50/ मन्त्र 4
    ऋषिः - प्रस्कण्वः काण्वः देवता - सूर्यः छन्दः - पिपीलिकामध्यानिचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    त॒रणि॑र्वि॒श्वद॑र्शतो ज्योति॒ष्कृद॑सि सूर्य । विश्व॒मा भा॑सि रोच॒नम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त॒रणिः॑ । वि॒श्वऽद॑र्शतः । ज्यो॒तिः॒ऽकृत् । अ॒सि॒ । सू॒र्य॒ । विश्व॑म् । आ । भा॒सि॒ । रो॒च॒नम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तरणिर्विश्वदर्शतो ज्योतिष्कृदसि सूर्य । विश्वमा भासि रोचनम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तरणिः । विश्वदर्शतः । ज्योतिःकृत् । असि । सूर्य । विश्वम् । आ । भासि । रोचनम्॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 50; मन्त्र » 4
    अष्टक » 1; अध्याय » 4; वर्ग » 7; मन्त्र » 4

    पदार्थ -

    १. हे (सूर्य) = सूर्य ! तू (तरणिः) = हमें रोगों से तारनेवाला है । उदय होता हुआ सूर्य रोगकृमियों को नष्ट करता है और इस प्रकार हमें नीरोग बनाता है । (विश्वदर्शतः) = [विश्वं दर्शतं द्रष्टव्यं यस्य] सूर्य सारे संसार का पालन करता है [दृश् - to look after] । (ज्योतिः कृत् असि) = यह सूर्य सर्वत्र प्रकाश करनेवाला है । (विश्वं रोचनम्) = सम्पूर्ण अन्तरिक्ष को (आभासि) = समन्तात् भासित कर देता है । सूर्य के उदय होते ही सम्पूर्ण अन्तरिक्ष सब ओर से चमक उठता है । २. सूर्य शरीर को रोगों से रहित करके स्वस्थ बनाता है [तरणिः], मस्तिष्क को यह ज्योतिर्मय करता है [ज्योतिष्कृत्] और हृदयान्तरिक्ष को सब मलिनताओं से रहित करके चमका देता है । एवं, सूर्य के प्रकाश का प्रभाव 'शरीर, मस्तिष्क व मन' सभी को सौन्दर्य प्रदान करनेवाला भावार्थ - सूर्य हमें 'श

    भावार्थ -

    सूर्य हमें शरीर मन व मस्तिष्क के त्रिविध स्वास्थ्य को प्राप्त कराता है। 

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