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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 109 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 109/ मन्त्र 1
    ऋषिः - जुहूर्ब्रह्मजाया, ऊर्ध्वनाभा वा ब्राह्मः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    ते॑ऽवदन्प्रथ॒मा ब्र॑ह्मकिल्बि॒षेऽकू॑पारः सलि॒लो मा॑त॒रिश्वा॑ । वी॒ळुह॑रा॒स्तप॑ उ॒ग्रो म॑यो॒भूरापो॑ दे॒वीः प्र॑थम॒जा ऋ॒तेन॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ते । अ॒व॒द॒न् । प्र॒थ॒माः । ब्र॒ह्म॒ऽकि॒ल्बि॒षे । अकू॑पारः । स॒लि॒लः । मा॒त॒रिश्वा॑ । वी॒ळुऽह॑राः । तपः॑ । उ॒ग्रः । म॒यः॒ऽभूः । आपः॑ । दे॒वीः । प्र॒थ॒म॒ऽजाः । ऋ॒तेन॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तेऽवदन्प्रथमा ब्रह्मकिल्बिषेऽकूपारः सलिलो मातरिश्वा । वीळुहरास्तप उग्रो मयोभूरापो देवीः प्रथमजा ऋतेन ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ते । अवदन् । प्रथमाः । ब्रह्मऽकिल्बिषे । अकूपारः । सलिलः । मातरिश्वा । वीळुऽहराः । तपः । उग्रः । मयःऽभूः । आपः । देवीः । प्रथमऽजाः । ऋतेन ॥ १०.१०९.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 109; मन्त्र » 1
    अष्टक » 8; अध्याय » 6; वर्ग » 7; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    [१] जिस समय विषयों में क्रीड़ा करता हुआ पुरुष ब्रह्म को भूल जाता है, तो यह ब्रह्म विषयक किल्विष व 'ब्रह्म किल्विष' कहलाता है। इस (ब्रह्मकिल्विषे) = ब्रह्म विषयक पाप के होने पर (ते) = वे (प्रथमा:) = देवताओं में प्रमुख स्थान रखनेवाले (अकूपारः) = [ अकुत्सितपारः दूरपार : महागतिः ] आदित्य, (सलिल:) = जल तथा (मातरिश्वा) = वायु (अवदन्) = उस ब्रह्म का उपदेश देते हैं। इन्हें देखकर उस विषय - प्रवण मनुष्य को भी प्रभु का स्मरण हो आता है, सूर्य-समुद्रों के जल व अन्तरिक्ष संचारी वायु इसे प्रभु की महिमा को करते प्रतीत होते हैं । द्युलोक का सूर्य - पृथ्वी के जल तथा अन्तरिक्ष का वायु तीनों ही उसे ब्रह्म का उपदेश करते हैं । [२] (ऋतेन प्रथमजाः) = प्रभु के तप से उत्पन्न ऋत से [ऋतं च सत्यंचाभीद्धात्तपसोऽध्यजायतः] (प्रथमजा:) = सृष्टि के प्रारम्भ में होनेवाले (उग्रः तपः) - अत्यन्त तेजस्वी दीप्त सूर्य, (मयोभूः) = कल्याण को देनेवाली वायु [वात आवातु भेषजं, शम्भु मयोभु नो हृदे १० । १८६ । १] तथा (देवीः आपः) = दिव्य गुणोंवाले जल ये सब (वीडुहरा:) = प्रबल तेजवाले हैं। [वीडु-strong] । इनके अन्दर उस-उस तेज को स्थापित करनेवाले वे प्रभु ही तो हैं। ये सब सूर्यादि प्रभु के तेज के अंश से ही तेजस्वी हो रहे हैं।

    भावार्थ - भावार्थ- सूर्य, जल व वायु ये सब प्रभु की महिमा का प्रतिपादन कर रहे हैं।

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