ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 123/ मन्त्र 1
अ॒यं वे॒नश्चो॑दय॒त्पृश्नि॑गर्भा॒ ज्योति॑र्जरायू॒ रज॑सो वि॒माने॑ । इ॒मम॒पां सं॑ग॒मे सूर्य॑स्य॒ शिशुं॒ न विप्रा॑ म॒तिभी॑ रिहन्ति ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒यम् । वे॒नः । चो॒द॒य॒त् । पृश्नि॑ऽगर्भाः । ज्योतिः॑ऽजरायुः । रज॑सः । वि॒ऽमाने॑ । इ॒मम् । अ॒पाम् । स॒म्ऽग॒मे । सूर्य॑स्य । शिशु॑म् । न । विप्राः॑ । म॒तिऽभिः॑ । रि॒ह॒न्ति॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अयं वेनश्चोदयत्पृश्निगर्भा ज्योतिर्जरायू रजसो विमाने । इममपां संगमे सूर्यस्य शिशुं न विप्रा मतिभी रिहन्ति ॥
स्वर रहित पद पाठअयम् । वेनः । चोदयत् । पृश्निऽगर्भाः । ज्योतिःऽजरायुः । रजसः । विऽमाने । इमम् । अपाम् । सम्ऽगमे । सूर्यस्य । शिशुम् । न । विप्राः । मतिऽभिः । रिहन्ति ॥ १०.१२३.१
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 123; मन्त्र » 1
अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 7; मन्त्र » 1
अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 7; मन्त्र » 1
विषय - आपः - सूर्य
पदार्थ -
[१] (अयं वेनः) = यह मेधावी पुरुष (रजसः) = रजोगुण के (विमाने) = विशिष्ट मानपूर्वक धारण करने पर (पृश्निगर्भा:) = सात उज्ज्वल वर्णवाली ज्ञानरश्मियाँ जिसके गर्भ में है उन वेद-ज्ञानों को (चोदयत्) = अपने में प्रेरित करता है वेदवाणियाँ सात छन्दोंवाले मन्त्रों में हैं। सूर्य की किरणें भी सात रंगों की हैं। वेद-ज्ञान सूर्य है, तो सात छन्दोंवाले मन्त्र उसकी सात उज्ज्वल किरणें हैं । वेन इन्हें अपने में धारण करता है । इन्हें धारण करने के लिए ही वह रजोगुण को विशिष्ट मानपूर्वक अपने में धारण करता है। रजोगुण के नितान्त अभाव में तो किसी भी क्रिया का सम्भव ही नहीं रहता । इस प्रकार इन पृश्निगर्भा वेदवाणियों को अपने में प्रेरित करता हुआ यह (ज्योतिर्जरायुः) = ज्योतिर्मय वेष्टनवाला होता है, अपने को ज्ञान से आच्छादित करता है। [२] (अपाम्) - रेतः कणों के तथा (सूर्यस्य) = ज्ञान के सूर्य के (संगमे) = मेल के होने पर, अर्थात् जिस समय रेतः कणों का रक्षण होता है और ज्ञान के सूर्य का उदय होता है तो उस समय (विप्राः) = ज्ञानी पुरुष (मतिभिः) = इन मननशील बुद्धियों के द्वारा (इयम्) = इस प्रभु का (रिहन्ति) = आस्वाद लेते हैं। प्रभु का मनन करते हुए ये लोग अपने हृदयों में आनन्द का अनुभव करते हैं । उसी प्रकार इसके मनन में आस्वाद को अनुभव करते हैं (न) = जैसे कि गौवें (शिशुम्) = अपने बछड़े को चाटती हुई आनन्द का अनुभव करती हैं ।
भावार्थ - भावार्थ- संयत रजोगुण के द्वारा वेन ज्ञान को प्राप्त करता है। रेतः कणों का रक्षण करता हुआ तथा ज्ञान के सूर्य के उदय को करता हुआ यह मनन के द्वारा प्रभु प्राप्ति के आनन्द का अनुभव करता है ।
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