Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 165 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 165/ मन्त्र 5
    ऋषिः - कपोतो नैर्ऋतः देवता - कपोतापहतौप्रायश्चित्तं वैश्वदेवम् छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    ऋ॒चा क॒पोतं॑ नुदत प्र॒णोद॒मिषं॒ मद॑न्त॒: परि॒ गां न॑यध्वम् । सं॒यो॒पय॑न्तो दुरि॒तानि॒ विश्वा॑ हि॒त्वा न॒ ऊर्जं॒ प्र प॑ता॒त्पति॑ष्ठः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ऋ॒चा । क॒पोत॑म् । नु॒द॒त॒ । प्र॒ऽनोद॑म् । इष॑म् । मद॑न्तः । परि॑ । गाम् । न॒य॒ध्व॒म् । स॒म्ऽयो॒पय॑न्तः । दुः॒ऽइ॒तानि॑ । विश्वा॑ । हि॒त्वा । नः॒ । ऊर्ज॑म् । प्र । प॒ता॒त् । पति॑ष्ठः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ऋचा कपोतं नुदत प्रणोदमिषं मदन्त: परि गां नयध्वम् । संयोपयन्तो दुरितानि विश्वा हित्वा न ऊर्जं प्र पतात्पतिष्ठः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ऋचा । कपोतम् । नुदत । प्रऽनोदम् । इषम् । मदन्तः । परि । गाम् । नयध्वम् । सम्ऽयोपयन्तः । दुःऽइतानि । विश्वा । हित्वा । नः । ऊर्जम् । प्र । पतात् । पतिष्ठः ॥ १०.१६५.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 165; मन्त्र » 5
    अष्टक » 8; अध्याय » 8; वर्ग » 23; मन्त्र » 5

    पदार्थ -
    [१] (प्रणोदम्) = प्रकृष्ट प्रेरणा को देनेवाले (कपोतम्) = आनन्दमय प्रभु को अपनी नाव बनानेवाले ब्रह्मनिष्ठ व्यक्ति को ऋचा ऋचाओं के हेतु से, विज्ञान के हेतु से [ऋग्वेद-विज्ञानवेद] (नुदत) = प्रेरित करे । नम्रतापूर्वक इस व्यक्ति से प्रार्थना करो कि वह तुम्हें पदार्थों का विज्ञान प्राप्त कराये । (इषं मदन्तः) = उससे दी गई प्रेरणा में आनन्द का अनुभव करते हुए (गां परिनयध्वम्) = इन ज्ञानवाणियों के साथ वरिणयवाले बनो। इस वेदवाणी के साथ तुम्हारा अटूट सम्बन्ध बने, यह तुम्हारी पत्नी के समान हो। [२] अब (विश्वा दुरितानि) = सब बुराइयों को (संयोपयन्तः) = अपने से दूर [ अदृश्य] करते हुए सब बुराइयों को तुम अपने से दूर करो। [३] इन बुराइयों से हम दूर रहें, इसके लिये हम चाहते हैं कि (पतिष्ठः) = गति में सर्वोत्तम यह ब्रह्मनिष्ठ परिव्राजक (ऊर्जं हित्वा) = बल व प्राणशक्ति को धारण करके (नः प्रपतात्) = हमें समीपता से प्राप्त हो। इस ब्रह्मनिष्ठ व्यक्ति के प्रेरणात्मक उपदेशों से ही हमारा जीवन उत्तम बनेगा ।

    भावार्थ - भावार्थ - ज्ञान प्राप्ति के लिये हम ब्रह्मनिष्ठ व्यक्ति के समीप नम्रता से पहुँचे। उसकी प्रेरणाओं से ज्ञान की वाणियों के साथ हमारा परिणय हो और पापों को हम अपने से दूर करें । इस सूक्त में ब्रह्मनिष्ठ पुरुष के सम्पर्क से ज्ञान प्राप्ति व पापवर्जन का सुन्दर चित्रण है । यह निष्पाप व्यक्ति श्रेष्ठ बनता है 'ऋषभः', विशिष्ट दीप्तिवाला बनता है 'वैराज:', यह शक्ति सम्पन्न होकर 'शाक्वरः' कहलाता है । यही अगले सूक्त का ऋषि है । इसकी प्रार्थना है-

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top