ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 32/ मन्त्र 1
प्र सु ग्मन्ता॑ धियसा॒नस्य॑ स॒क्षणि॑ व॒रेभि॑र्व॒राँ अ॒भि षु प्र॒सीद॑तः । अ॒स्माक॒मिन्द्र॑ उ॒भयं॑ जुजोषति॒ यत्सो॒म्यस्यान्ध॑सो॒ बुबो॑धति ॥
स्वर सहित पद पाठप्र । सु । ग्मन्ता॑ । धि॒य॒सा॒नस्य॑ । स॒क्षणि॑ । व॒रेभिः॑ । व॒रान् । अ॒भि । सु । प्र॒ऽसीद॑तः । अ॒स्माक॑म् । इन्द्रः॑ । उ॒भय॑म् । जु॒जो॒ष॒ति॒ । यत् । सो॒म्यस्य॑ । अन्ध॑सः । बुबो॑धति ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र सु ग्मन्ता धियसानस्य सक्षणि वरेभिर्वराँ अभि षु प्रसीदतः । अस्माकमिन्द्र उभयं जुजोषति यत्सोम्यस्यान्धसो बुबोधति ॥
स्वर रहित पद पाठप्र । सु । ग्मन्ता । धियसानस्य । सक्षणि । वरेभिः । वरान् । अभि । सु । प्रऽसीदतः । अस्माकम् । इन्द्रः । उभयम् । जुजोषति । यत् । सोम्यस्य । अन्धसः । बुबोधति ॥ १०.३२.१
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 32; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 7; वर्ग » 29; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 7; वर्ग » 29; मन्त्र » 1
विषय - उत्तमोत्तम मार्ग की ओर
पदार्थ -
[१] पति पत्नी को सम्बोधन करके कहते हैं कि (धियसानस्य) = ध्यान करने के स्वभाववाले के (सक्षणि) = सेवन में, सम्पर्क में (प्र) = प्रकर्षेण (सुग्मन्ता) = अच्छी तरह से आप जानेवाले होवो । आपका सम्पर्क ध्यान की वृत्तिवाले लोगों के साथ हो, भोग प्रधान वृत्तिवालों का सम्पर्क आपको भी भोग-प्रवण ही तो बना देगा। [२] इस प्रकार ध्यान- प्रवण लोगों के सम्पर्क में रहकर (वरेभिः वरान्) = अच्छे से भी अच्छे मार्गों के (अभि) = ओर (सु) = उत्तमत्ता से (प्रसीदत:) = [ proceed ] आप आगे बढ़ो। प्रभु ध्यान करनेवाले लोगों का सम्पर्क हमें उत्तम मार्ग पर आगे बढ़ायेगा, जबकि भोग- प्रवण लोगों का सम्पर्क हमारे ह्रास का ही कारण बनेगा। [३] प्रभु कहते हैं कि (इन्द्रः) = ध्यान वृत्ति के लोगों के सम्पर्क में रहनेवाला जितेन्द्रिय पुरुष (अस्माकम्) = हमारा (उभयम्) = दोनों सन्ध्या कालों में प्रातः-सायं निरन्तर (जुजोषति) = प्रीतिपूर्वक सेवन करता है । इसकी भी रुचि ध्यान की बनती है और इस ध्यान में यह कभी भी विच्छेद नहीं होने देता। [४] यह कर ऐसा तभी पाता है (यत्) = जब कि (सोम्यस्य अन्धसः) = सोम के लिये, वीर्य शक्ति के लिये हितकर (अन्धसः) = अन्न को ही यह (बुबोधति) = जानता है। यह सोम्य अन्नों के सिवाय अन्य अन्नों का पदार्थों का यह कभी प्रयोग नहीं करता । इसीका परिणाम है कि इसकी मनोवृत्ति सुन्दर बनी रहती है।
भावार्थ - भावार्थ - ध्यानवृत्ति पुरुषों के सम्पर्क से हम उत्तमोत्तम मार्गों का आक्रमण करनेवाले हैं। दोनों संधिवेलाओं में प्रभु का ध्यान करें। सोम्य अन्नों का ही सेवन करें।
इस भाष्य को एडिट करें