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ऋग्वेद मण्डल - 2 के सूक्त 28 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 28/ मन्त्र 1
    ऋषिः - कूर्मो गार्त्समदो गृत्समदो वा देवता - वरुणः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    इ॒दं क॒वेरा॑दि॒त्यस्य॑ स्व॒राजो॒ विश्वा॑नि॒ सन्त्य॒भ्य॑स्तु म॒ह्ना। अति॒ यो म॒न्द्रो य॒जथा॑य दे॒वः सु॑की॒र्तिं भि॑क्षे॒ वरु॑णस्य॒ भूरेः॑॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒दम् । क॒वेः । आ॒दि॒त्यस्य॑ । स्व॒ऽराजः॑ । विश्वा॑नि । सन्ति॑ । अ॒भि । अ॒स्तु॒ । म॒ह्ना । अति॑ । यः । म॒न्द्रः । य॒जथा॑य । दे॒वः । सु॒ऽकी॒र्तिम् । भि॒क्षे॒ । वरु॑णस्य । भूरेः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इदं कवेरादित्यस्य स्वराजो विश्वानि सन्त्यभ्यस्तु मह्ना। अति यो मन्द्रो यजथाय देवः सुकीर्तिं भिक्षे वरुणस्य भूरेः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इदम्। कवेः। आदित्यस्य। स्वऽराजः। विश्वानि। सन्ति। अभि। अस्तु। मह्ना। अति। यः। मन्द्रः। यजथाय। देवः। सुऽकीर्तिम्। भिक्षे। वरुणस्य। भूरेः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 28; मन्त्र » 1
    अष्टक » 2; अध्याय » 7; वर्ग » 9; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    १. (इदम्) = यह स्तोत्र उस प्रभु का है जो कि (कवेः) = क्रान्तदर्शी हैं-तत्त्वज्ञानी हैं–सर्वज्ञ हैं । (आदित्यस्य) = जो प्रभु आदित्य हैं-सूर्यसम तेज से देदीप्यमान हैं, अथवा सबको अपने अन्दर लिये हुए हैं 'आदानादादित्यः' । (स्वराजः) = स्वयं राजमान हैं- किसी अन्य से शासित नहीं होते‘प्रशासितारं सर्वेषाम् ' = सबके शासक हैं। वे प्रभु (मह्ना) = अपनी महिमा से (विश्वानि सान्ति) = सब वर्तमान पदार्थों को (अभ्यस्तु) = अभिभूत किये हुए हैं। प्रभु के शासन से कोई भी वस्तु अतीत नहीं। २. (यः देवः) = जो प्रकाशयुक्त प्रभु (यजथाय) = [देवपूजा] पूजा करनेवाले के लिए (अतिमन्द्रः) = अतिशयेन हर्षयिता है। मैं उस (भूरेः) = [भृ=धारणपोषणयोः] धारण व पोषण करनेवाले (वरुणस्य) = वरुण के, पाप-निवारक प्रभु के (सुकीर्तिम्) = उत्तम कीर्तन को (भिक्षे) = माँगता हूँ। अथवा उस प्रभु से उत्तम कीर्तियुक्त जीवन की भिक्षा चाहता हूँ-मेरा जीवन अपयशवाला न हो जाए।

    भावार्थ - भावार्थ – पापनिवारक वरुणदेव की कृपा से मेरा जीवन उत्तमकीर्तिवाला हो ।

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