साइडबार
ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 42/ मन्त्र 1
ऋषिः - गृत्समदः शौनकः
देवता - कपिञ्जलइवेन्द्रः
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
कनि॑क्रदज्ज॒नुषं॑ प्रब्रुवा॒ण इय॑र्ति॒ वाच॑मरि॒तेव॒ नाव॑म्। सु॒म॒ङ्गल॑श्च शकुने॒ भवा॑सि॒ मा त्वा॒ का चि॑दभि॒भा विश्व्या॑ विदत्॥
स्वर सहित पद पाठकनि॑क्रदत् । ज॒नुष॑म् । प्र॒ऽब्रु॒वा॒णः । इय॑र्ति । वाच॑म् । अ॒रि॒ताऽइ॑व । नाव॑म् । सु॒ऽम॒ङ्गलः॑ । च॒ । श॒कु॒ने॒ । भवा॑सि । मा । त्वा॒ । का । चि॒त् । अ॒भि॒ऽभा । विश्व्या॑ । वि॒द॒त् ॥
स्वर रहित मन्त्र
कनिक्रदज्जनुषं प्रब्रुवाण इयर्ति वाचमरितेव नावम्। सुमङ्गलश्च शकुने भवासि मा त्वा का चिदभिभा विश्व्या विदत्॥
स्वर रहित पद पाठकनिक्रदत्। जनुषम्। प्रऽब्रुवाणः। इयर्ति। वाचम्। अरिताऽइव। नावम्। सुऽमङ्गलः। च। शकुने। भवासि। मा। त्वा। का। चित्। अभिऽभा। विश्व्या। विदत्॥
ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 42; मन्त्र » 1
अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 11; मन्त्र » 1
अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 11; मन्त्र » 1
विषय - आदर्श परिव्राजक
पदार्थ -
१. (कनिक्रदत्) = प्रभु का निरन्तर आह्वान करता हुआ, (जनुषं प्रब्रुवाण:) = इस संसार में जन्म लेनेवाले इन मानवों को (प्रब्रुवाणः) = प्रकर्षेण धर्म का उपदेश करता हुआ यह (वाचम् इयर्ति) = वाणी को प्रेरित करता है। परिव्राजक की प्रथम विशेषता यही है कि [क] वह निरन्तर प्रभु के नाम का जप करता है । [ख] फिर, यह लोगों को सत्य का उपदेश देता है [ग] उपदेश के लिए ही यह वाणी का प्रयोग करता है-अन्यथा मौन रहता है। यह वाणी का प्रयोग ऐसे करता है, (इव) = जैसे कि (अरिता) = चप्पू चलानेवाला [Darsman] (नावम्) = नाव का प्रयोग करता है। नाव द्वारा वह लोगों को नदी के पार करता है, इसी प्रकार यह वाणीरूप नाव द्वारा लोगों को पाप समुद्र में डूबने से बचाता है। २. हे शकुने शक्तिशालिन् संन्यासिन्! तू लोगों के लिए इन सदुपदेशों से (सुमंगलः भवासि) = उत्तम कल्याण करनेवाला होता है। (च) और तू इस बात का पूरा ध्यान करना कि (त्वा) = तुझे (काचित्) = कोई भी (विश्व्या) = सब दिशाओं में होनेवाला–अथवा सबके अन्दर आ जानेवाला (अभिभा) = अभिभव-वासनाओं से होनेवाला तिरस्कार (मा विदत्) = मत प्राप्त हो । तुझे कोई भी वासना कभी आक्रान्त न कर ले। इन्हें छोड़कर ही तू संन्यस्त हुआ है। वासनाएँ ही नहीं छुटी तो संन्यास क्या? और वासनाओं में फंसे हुए पुरुष से दिए जानेवाले उपदेश का प्रभाव भी क्या होना ?
भावार्थ - भावार्थ - परिव्राजक [क] सदा प्रभुस्मरण करनेवाला हो [ख] सत्योपदेश के लिए ही वाणी का प्रयोग करे [ग] लोगों को भवसागर में डूबने से बचानेवाला मल्लाह बने [घ] स्वयं शक्तिशाली होता हुआ वासनाओं में न फंसे। ऐसा संन्यासी ही लोककल्याण कर पाता है।
इस भाष्य को एडिट करें