ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 6/ मन्त्र 10
ऋषिः - गाथिनो विश्वामित्रः
देवता - अग्निः
छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
स होता॒ यस्य॒ रोद॑सी चिदु॒र्वी य॒ज्ञंय॑ज्ञम॒भि वृ॒धे गृ॑णी॒तः। प्राची॑ अध्व॒रेव॑ तस्थतुः सु॒मेके॑ ऋ॒ताव॑री ऋ॒तजा॑तस्य स॒त्ये॥
स्वर सहित पद पाठसः । होता॑ । यस्य॑ । रोद॑सी॒ इति॑ । चि॒त् । उ॒र्वी इति॑ । य॒ज्ञम्ऽय॑ज्ञम् । अ॒भि । वृ॒धे । गृ॒णी॒तः । प्राची॒ इति॑ । अ॒ध्व॒राऽइ॑व । त॒स्थ॒तुः । सु॒मेके॒ इति॑ सु॒ऽमेके॑ । ऋ॒तव॑री॒ इत्यृ॒तऽव॑री । ऋ॒तऽजा॑तस्य । स॒त्ये इति॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
स होता यस्य रोदसी चिदुर्वी यज्ञंयज्ञमभि वृधे गृणीतः। प्राची अध्वरेव तस्थतुः सुमेके ऋतावरी ऋतजातस्य सत्ये॥
स्वर रहित पद पाठसः। होता। यस्य। रोदसी इति। चित्। उर्वी इति। यज्ञम्ऽयज्ञम्। अभि। वृधे। गृणीतः। प्राची इति। अध्वराऽइव। तस्थतुः। सुमेके इति सुऽमेके। ऋतावरी इत्यृतऽवरी। ऋतऽजातस्य। सत्ये इति॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 6; मन्त्र » 10
अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 27; मन्त्र » 5
अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 27; मन्त्र » 5
विषय - उत्तम मस्तिष्क व शरीर
पदार्थ -
[१] (सः) = गतमन्त्र में प्रभु का (आवाहन) = करनेवाला साधक (होता) = सदा दानपूर्वक अदन करनेवाला होता है यह भोगवृत्ति को नहीं अपनाता। यह वह होता है यस्य जिस के (रोदसी) = द्यावापृथिवी, मस्तिष्क और शरीर (चित्) = निश्चय से (उर्वी) = विस्तीर्ण होते हैं। यह शरीर और मस्तिष्क की शक्ति को बढ़ाता है। इसके मस्तिष्क और शरीर (यज्ञं यज्ञम्) = प्रत्येक यज्ञ की (अभि) = ओर चलते हैं और (वृधे) = वृद्धि के लिये (गृणीत:) = उन यज्ञों का ही उच्चारण करते हैं, अर्थात् इसके मस्तिष्क और शरीर यज्ञ की ही अभिरुचि व झुकाववाले होते हैं। यह यज्ञों को ही सोचता है, यज्ञों को ही करता है। [२] इसके मस्तिष्क और शरीर (प्राची) = आगे बढ़नेवाले, (अध्वरा इव) = यज्ञमय से, सुमेके उत्तम निर्माणवाले (ऋतावरी) = ऋत का अवन [रक्षण] करनेवाले होकर (तस्थतुः) = स्थित होते हैं । (ऋतजातस्य) = ऋत के प्रादुर्भाववाले इस व्यक्ति के ये द्यावापृथिवी (सत्ये) = बिलकुल ठीक होते हैं। शरीर बिलकुल नीरोग, मस्तिष्क दीप्तिमय । ये इसे आगे बढ़ाते हैं (प्राची), इसके जीवन को यज्ञमय बनाते हैं (अध्वरा इव) सदा शुभ कर्मों को कराते हैं (सुमेके) और इसके जीवन में ऋत का रक्षण करते हैं (ऋतावरी) ।
भावार्थ - भावार्थ- हमारे मस्तिष्क व शरीर दोनों उत्तम हों-हमें यज्ञप्रवण करें।
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