ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 26/ मन्त्र 1
अग्ने॑ पावक रो॒चिषा॑ म॒न्द्रया॑ देव जि॒ह्वया॑। आ दे॒वान्व॑क्षि॒ यक्षि॑ च ॥१॥
स्वर सहित पद पाठअग्ने॑ । पा॒व॒क॒ । रो॒चिषा॑ । म॒न्द्रया॑ । दे॒व॒ । जि॒ह्वया॑ । आ । दे॒वान् । व॒क्षि॒ । यक्षि॑ । च॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्ने पावक रोचिषा मन्द्रया देव जिह्वया। आ देवान्वक्षि यक्षि च ॥१॥
स्वर रहित पद पाठअग्ने। पावक। रोचिषा। मन्द्रया। देव। जिह्वया। आ। देवान्। वक्षि। यक्षि। च ॥१॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 26; मन्त्र » 1
अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 19; मन्त्र » 1
अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 19; मन्त्र » 1
विषय - 'रोचिषा – मन्द्रयाजिह्वया' [ज्ञान+स्तुति]
पदार्थ -
१. हे (पावक) = पवित्र करनेवाले, (अग्ने) = अग्रणी (देव) = प्रकाशमय प्रभो ! (रोचिषा) = ज्ञानदीप्ति के द्वारा तथा (मन्द्रया जिह्वया) = स्तुतिवाली जिह्वा के द्वारा आप (देवान्) = दिव्यगुणों को (आवक्षि) = हमें प्राप्त कराएँ (च) = और उन दिव्य गुणों का ही (यक्षि) = हमारे साथ संगम कराएँ । २. प्रभु हमें पवित्र करें। हमें उन्नति पथ पर आगे ले चलें। हमारे जीवन को प्रकाशमय बनाएँ। ज्ञानदीप्ति के द्वारा तथा स्तुतिशब्दों का उच्चारण करनेवाली वाणी के द्वारा प्रभु हमारे जीवनों में दिव्यता का वर्धन करें।
भावार्थ - भावार्थ- प्रभु कृपा से हमारा झुकाव ज्ञान व स्तुतिमय वाणी की ओर हो। ये दोनों ही चीजें हमें देव बनानेवाली हों ।
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