ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 28/ मन्त्र 1
ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः
देवता - गावः
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
आ गावो॑ अग्मन्नु॒त भ॒द्रम॑क्र॒न्त्सीद॑न्तु गो॒ष्ठे र॒णय॑न्त्व॒स्मे। प्र॒जाव॑तीः पुरु॒रूपा॑ इ॒ह स्यु॒रिन्द्रा॑य पू॒र्वीरु॒षसो॒ दुहा॑नाः ॥१॥
स्वर सहित पद पाठआ । गावः॑ । अ॒ग्म॒न् । उ॒त । भ॒द्रम् । अ॒क्र॒न् । सीद॑न्तु । गो॒ऽस्थे । र॒णय॑न्तु । अ॒स्मे इति॑ । प्र॒जाऽव॑तीः । पु॒रु॒ऽरूपाः॑ । इ॒ह । स्युः॒ । इन्द्रा॑य । पू॒र्वीः । उ॒षसः॑ । दुहा॑नाः ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ गावो अग्मन्नुत भद्रमक्रन्त्सीदन्तु गोष्ठे रणयन्त्वस्मे। प्रजावतीः पुरुरूपा इह स्युरिन्द्राय पूर्वीरुषसो दुहानाः ॥१॥
स्वर रहित पद पाठआ। गावः। अग्मन्। उत। भद्रम्। अक्रन्। सीदन्तु। गोऽस्थे। रणयन्तु। अस्मे इति। प्रजाऽवतीः। पुरुऽरूपाः। इह। स्युः। इन्द्राय। पूर्वीः। उषसः। दुहानाः ॥१॥
ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 28; मन्त्र » 1
अष्टक » 4; अध्याय » 6; वर्ग » 25; मन्त्र » 1
अष्टक » 4; अध्याय » 6; वर्ग » 25; मन्त्र » 1
विषय - गौवें और भद्र
पदार्थ -
[१] (गावः) = गौवें (सर्वत) = सब ओर से (आ अग्मन्) = हमें प्राप्त हों, (उत) = और (भद्रं अक्रन्द) = हमारा कल्याण करें। ये गौवें (गोष्ठे सीदन्तु) = गोष्ठ में स्थित हों और (अस्मे) = हमारे लिये (रणयन्तु) = रमणीयता व आनन्द को करनेवाली हैं। वस्तुतः इन गौवों के दूध से ही इन्द्रिय रूप गौवों को शक्ति व ज्ञानदीप्ति प्राप्त होती है। यह दूध ही कर्मेन्द्रियों को सात्त्विक यज्ञादि कर्मों में व्याप्त करके सशक्त बनाता है तथा ज्ञानेन्द्रियों को यही ज्ञानदीप्त करता है। [२] ये गौवें (इह) = हमारे घरों में (प्रजावती:) = प्रकृष्ट प्रजाओंवाली, उत्तम बछड़े-बछियोंवाली व (पुरुरूपाः) = भिन्न-भिन्न रूपोंवाली 'गौर, कपिला व कृष्ण' (स्युः) = हों। यह गौवें (इन्द्राय) = इस जितेन्द्रिय पुरुष के लिये (पूर्वी:) = बहुत (उषस:) = उषाकालों में (दुहाना:) = दोहमान हों, दूध को देनेवाली हों ।
भावार्थ - भावार्थ- गौवें घरों में प्राप्त हों और हमारे घरों को मगंलमय बनायें। उत्तम बछड़ोंवाली, अनेक रूपोंवाली ये गौवें सदा उषाकालों में दूध को प्राप्त करानेवाली हों ।
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