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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 18 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 18/ मन्त्र 1
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्र: छन्दः - पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः

    त्वे ह॒ यत्पि॒तर॑श्चिन्न इन्द्र॒ विश्वा॑ वा॒मा ज॑रि॒तारो॒ अस॑न्वन्। त्वे गावः॑ सु॒दुघा॒स्त्वे ह्यश्वा॒स्त्वं वसु॑ देवय॒ते वनि॑ष्ठः ॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वे इति॑ । ह॒ । यत् । पि॒तरः॑ । चि॒त् । नः॒ । इ॒न्द्र॒ । विश्वा॑ । वा॒मा । ज॒रि॒तारः॑ । अस॑न्वन् । त्वे इति॑ । गावः॑ । सु॒ऽदुघाः॑ । त्वे इति॑ । हि । अश्वाः॑ । त्वम् । वसु॑ । दे॒व॒ऽय॒ते । वनि॑ष्ठः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वे ह यत्पितरश्चिन्न इन्द्र विश्वा वामा जरितारो असन्वन्। त्वे गावः सुदुघास्त्वे ह्यश्वास्त्वं वसु देवयते वनिष्ठः ॥१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वे इति। ह। यत्। पितरः। चित्। नः। इन्द्र। विश्वा। वामा। जरितारः। असन्वन्। त्वे इति। गावः। सुऽदुघाः। त्वे इति। हि। अश्वाः। त्वम्। वसु। देवऽयते। वनिष्ठः ॥१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 18; मन्त्र » 1
    अष्टक » 5; अध्याय » 2; वर्ग » 24; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    [१] हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो ! (यत्) = जब (न:) = हमारे में से जो कोई भी (त्वे ह) = आप में ही निवास करते हैं, वे (चिन्) = निश्चय से (पितरः) = रक्षणात्मक कार्यों में लगनेवाले होते हैं, अर्थात् आपका ध्यान करनेवाले लोग अवश्य 'पितर' बनते हैं। ये (जरितारः) = आपका सच्चा स्तवन करनेवाले लोग (विश्वा) = सब वामा सुन्दर धनों को (असन्वन्) = प्राप्त करते हैं। [२] (त्वे) = आपकी उपासना में ही (सुदुघा:) = सुख सन्दोह्य (गावः) = गौवें हैं, (त्वे हि) = आपकी उपासना में ही (अश्वाः) = उत्तम अश्व हैं। (त्वम्) = आप ही (देवयते) = दिव्यगुणों की प्राप्ति की कामनावाले पुरुष के लिये (वसु) = धन के (वनिष्ठ:) = दातृतम होते हैं। सब वसुओं को आप ही प्राप्त कराते हैं।

    भावार्थ - भावार्थ- प्रभु में निवास करनेवाला व्यक्ति रक्षणात्मक कार्यों में प्रवृत्त होता है। प्रभु के स्तोता सब वननीय धनों को प्राप्त करते हैं। प्रभु उत्तम गौवों, अश्वों व धनों को प्राप्त करानेवाले हैं।

    - सूचना- यहाँ 'गाव:' से ज्ञानेन्द्रियों का तथा 'अश्वाः' से कर्मेन्द्रियों का भाव लेना भी उचित ही है। प्रभु उपासक को उत्तम ज्ञानदुग्ध देनेवाली ज्ञानेन्द्रियरूप गौवों को प्राप्त कराते हैं। तथा कर्मों में व्याप्त होनेवाली कर्मेन्द्रियों को प्राप्त कराते हैं, ये ही 'अश्व' हैं 'अश्नुवते कर्मसु ।

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