ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 31/ मन्त्र 2
शंसेदु॒क्थं सु॒दान॑व उ॒त द्यु॒क्षं यथा॒ नरः॑। च॒कृ॒मा स॒त्यरा॑धसे ॥२॥
स्वर सहित पद पाठशंस॑ । इत् । उ॒क्थम् । सु॒ऽदान॑वे । उ॒त । द्यु॒क्षम् । यथा॑ । नरः॑ । च॒कृ॒म । स॒त्यऽरा॑धसे ॥
स्वर रहित मन्त्र
शंसेदुक्थं सुदानव उत द्युक्षं यथा नरः। चकृमा सत्यराधसे ॥२॥
स्वर रहित पद पाठशंस। इत्। उक्थम्। सुऽदानवे। उत। द्युक्षम्। यथा। नरः। चकृम। सत्यऽराधसे ॥२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 31; मन्त्र » 2
अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 15; मन्त्र » 2
अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 15; मन्त्र » 2
विषय - मुमुक्षु के गुण
पदार्थ -
पदार्थ- (सु-दानवे) = उत्तम दाता (सत्य राधसे) = सत्य और न्याय के धनी पुरुष के लिये मैं (उक्थं) = उत्तम वचन (शंसे) = कहूँ। (यथा) = जैसे (नरः) = मनुष्य उसके लिये (द्युक्षं) = अन्न आदि से सत्कार करते हैं वैसे ही हम लोग उसका (द्युक्षं चकृम) = सत्कार करें।
भावार्थ - भावार्थ- मोक्ष की कामनावाले योगी को शान्त, सहनशील, मन और इन्द्रियों पर संयम रखनेवाला तथा सत्यवादी होना चाहिए।
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