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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 93 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 93/ मन्त्र 1
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्राग्नी छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    शुचिं॒ नु स्तोमं॒ नव॑जातम॒द्येन्द्रा॑ग्नी वृत्रहणा जु॒षेथा॑म् । उ॒भा हि वां॑ सु॒हवा॒ जोह॑वीमि॒ ता वाजं॑ स॒द्य उ॑श॒ते धेष्ठा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शुचि॑म् । नु । स्तोम॑म् । नव॑ऽजातम् । अ॒द्य । इन्द्रा॑ग्नी॒ इति॑ । वृ॒त्र॒ऽह॒ना॒ । जु॒षेथा॑म् । उ॒भा । हि । वा॒म् । सु॒ऽहवा॑ । जोह॑वीमि । ता । वाज॑म् । स॒द्यः । उ॒श॒ते । धेष्ठा॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शुचिं नु स्तोमं नवजातमद्येन्द्राग्नी वृत्रहणा जुषेथाम् । उभा हि वां सुहवा जोहवीमि ता वाजं सद्य उशते धेष्ठा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शुचिम् । नु । स्तोमम् । नवऽजातम् । अद्य । इन्द्राग्नी इति । वृत्रऽहना । जुषेथाम् । उभा । हि । वाम् । सुऽहवा । जोहवीमि । ता । वाजम् । सद्यः । उशते । धेष्ठा ॥ ७.९३.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 93; मन्त्र » 1
    अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 15; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    पदार्थ - जैसे (वृत्र-हणा) = विघ्ननाशन करनेवाले माता-पिता (नव-जातं शुचिं) = नये उत्पन्न उत्तम शुद्ध बालक को (जुषेताम्) = प्रेम करते और (धेष्ठा वाजं उशते दत्तः) = पालक माता-पिता बुभुक्षित को अन्न देते हैं वैसे ही हे (इन्द्राग्नी) = ऐश्वर्यवन् और तेजस्विन् अग्रणी नायको! आप दोनों (वृत्र-हणा) = बढ़ते शत्रुओं के नाशक होकर (शुचिम्) = पवित्र व्यवहारवाले (नवजातम्) = नये ही प्राप्त, (स्तोमं) = स्तुतियोग्य प्रजा के अधिकार (अद्य) = आज के समान सदा (जुषेताम्) = प्रेम और उत्साह से प्राप्त करें। (ता) = वे दोनों (धेष्ठा) = प्रजा, सैन्य, सभादि के अधिकार को उत्तम रीति से धारण करने में समर्थ होकर (सद्यः) = शीघ्र ही (उशते) = कामनावाले प्रजाजन को (वाजं) = अभिलषित धन, अन्न, बल, ज्ञान आदि दें। (उभाहि वां) = आप दोनों को ही मैं (सु हवा) = सुख से, आदर सहित बुलाने योग्य (जोहवीमि) = स्वीकार करता हूँ, आपको आदर से निमन्त्रित करूँ। माता-पिता दोनों ही इन्द्र और दोनों ही अग्नि हैं। वे सन्तान के बाधक कारणों का नाश करने से 'वृत्रहन्' हैं।

    भावार्थ - भावार्थ- राष्ट्रनायक तथा सेनानायक दोनों तेजस्वी होकर प्रजा को ऐश्वर्य सम्पन्न बनाकर रक्षा करें। प्रजा के साथ प्रेमपूर्वक मधुर व्यवहार करें। उन्हें सुखी बनाने के लिए इच्छित धन, अन्न, बल व ज्ञान प्रदान करावें। और प्रजा का उत्तम रीति से पुत्रवत् पालन करें।

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