ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 23/ मन्त्र 1
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
सोमा॑ असृग्रमा॒शवो॒ मधो॒र्मद॑स्य॒ धार॑या । अ॒भि विश्वा॑नि॒ काव्या॑ ॥
स्वर सहित पद पाठसोमाः॑ । अ॒सृ॒ग्र॒म् । आ॒शवः॑ । मधोः॑ । मद॑स्य । धार॑या । अ॒भि । विश्वा॑नि । काव्या॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
सोमा असृग्रमाशवो मधोर्मदस्य धारया । अभि विश्वानि काव्या ॥
स्वर रहित पद पाठसोमाः । असृग्रम् । आशवः । मधोः । मदस्य । धारया । अभि । विश्वानि । काव्या ॥ ९.२३.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 23; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 13; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 13; मन्त्र » 1
विषय - 'स्फूर्ति- माधुर्य - उल्लास व तत्त्वज्ञान'
पदार्थ -
[१] (सोमाः) = सोमकण (असृग्रम्) = शरीर में उत्पन्न किये जाते हैं। ये सोमकण (आशवः) = शरीर में सुरक्षित होने पर हमें शीघ्रता से कार्यों को करानेवाले होते हैं, ये हमारे जीवनों में स्फूर्ति को पैदा करते हैं। ये सोम (मधोः) = माधुर्य के व (मदस्य) = हर्ष के (धारया) = धारण के हेतु से शरीर में उत्पन्न किये जाते हैं। शरीर में सुरक्षित हुए हुए ये माधुर्य की व हर्ष की धारा को जन्म देते हैं । सोमरक्षक के जीवन में माधुर्य व मद होता है। 'वाणी में माधुर्य, मन में आह्लाद' ये सुरक्षित सोम के परिणाम हैं । [२] यह सोम (विश्वानि) = सब (काव्या) = तत्त्वज्ञानों को (अभि) = लक्ष्य करके शरीर में सृष्ट होता है। इससे ज्ञानाग्नि का दीपन होता है, बुद्धि को यह सूक्ष्म बनाता है। इस सूक्ष्म बुद्धि से हम तत्त्व का दर्शन करते हैं।
भावार्थ - भावार्थ- सुरक्षित सोम 'स्फूर्ति- माधुर्य- उल्लास व तत्त्वज्ञान' को हमारे जीवनों में जन्म देता है।
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