ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 4/ मन्त्र 1
सना॑ च सोम॒ जेषि॑ च॒ पव॑मान॒ महि॒ श्रव॑: । अथा॑ नो॒ वस्य॑सस्कृधि ॥
स्वर सहित पद पाठसना॑ । च॒ । सो॒म॒ । जेषि॑ । च॒ । पव॑मान । महि॑ । श्रवः॑ । अथ॑ । नः॒ । वस्य॑सः । कृ॒धि॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
सना च सोम जेषि च पवमान महि श्रव: । अथा नो वस्यसस्कृधि ॥
स्वर रहित पद पाठसना । च । सोम । जेषि । च । पवमान । महि । श्रवः । अथ । नः । वस्यसः । कृधि ॥ ९.४.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 22; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 22; मन्त्र » 1
विषय - विजय तथा ज्ञान प्राप्ति
पदार्थ -
[१] हे (पवमान) = हमारे जीवनों को पवित्र करनेवाले (सोम) = वीर्य ! तू हमारे लिये (महि श्रवः) = महान् ज्ञान को (सना) = प्राप्त करा । (च) = और तू ही तो (जेषि) = हमारे लिये सब विजयों को करता है। [२] (अथा) = अब महनीय ज्ञानों को प्राप्त कराके तथा सब वासनाओं को पराभूत करके (नः) = हमें (वस्यसः) = उत्कृष्ट जीवनवाला (कृधि) = करिये। इस शरीर में हमारा निवास हो । जीवन का वास्तविक उत्कर्ष यही है कि हम वासनाओं से पराभूत न हों तथा ज्ञान प्राप्ति के द्वारा प्रकाशमय जीवनवाले हों ।
भावार्थ - भावार्थ-सोमरक्षण द्वारा विजयी बनकर व ज्ञान को प्राप्त करके हम उत्कृष्ट जीवनवाले हों ।
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