ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 5/ मन्त्र 39
ऋषिः - ब्रह्मातिथिः काण्वः
देवता - वैद्यस्य कशोर्दानस्तुतिः
छन्दः - निचृदार्ष्यनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
माकि॑रे॒ना प॒था गा॒द्येने॒मे यन्ति॑ चे॒दय॑: । अ॒न्यो नेत्सू॒रिरोह॑ते भूरि॒दाव॑त्तरो॒ जन॑: ॥
स्वर सहित पद पाठमाकिः॑ । ए॒ना । प॒था । गा॒द्येन॑ । इ॒मे । यन्ति॑ । चे॒दयः॑ । अ॒न्यः । न । इत् । सू॒रिः । ओह॑ते । भू॒र्द॒ाव॑त्ऽतरः॑ । जनः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
माकिरेना पथा गाद्येनेमे यन्ति चेदय: । अन्यो नेत्सूरिरोहते भूरिदावत्तरो जन: ॥
स्वर रहित पद पाठमाकिः । एना । पथा । गाद्येन । इमे । यन्ति । चेदयः । अन्यः । न । इत् । सूरिः । ओहते । भूर्दावत्ऽतरः । जनः ॥ ८.५.३९
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 5; मन्त्र » 39
अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 8; मन्त्र » 4
अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 8; मन्त्र » 4
पदार्थ -
(येन) जिस मार्ग से (इमे, चेदयः) ये ज्ञानयोगी लोग (यन्ति) जाते हैं (एना, पथा) उस मार्ग से (माकिः, गात्) अन्य नहीं जा सकता (भूरिदावत्तरः) अत्यन्त दानी परोपकारी भी (अन्यः, सूरिः, जनः) दूसरा सामान्यज्ञानी (न, इत्, ओहते) उसके समान भौतिकसम्पत्ति को धारण नहीं कर सकता ॥३९॥
भावार्थ - हे ज्ञानयोगिन् तथा कर्मयोगिन् ! आप मुझको शुभमार्ग प्राप्त कराएँ, जो मेरे लिये कल्याणकारी हो अर्थात् ज्ञानी जनों का जो मार्ग है, वह मार्ग मुझे प्राप्त हो, जिसको दानशील परोपकारी तथा भौतिकसम्पत्तिशील पुरुष प्राप्त नहीं कर सकते ॥३९॥ यह पाँचवाँ सूक्त और आठवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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