ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 27/ मन्त्र 1
ए॒ष क॒विर॒भिष्टु॑तः प॒वित्रे॒ अधि॑ तोशते । पु॒ना॒नो घ्नन्नप॒ स्रिध॑: ॥
स्वर सहित पद पाठए॒षः । क॒विः । अ॒भिऽस्तु॑तः । प॒वित्रे॑ । अधि॑ । तो॒श॒ते॒ । पु॒ना॒नः । घ्नन् । अप॑ । स्रिधः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
एष कविरभिष्टुतः पवित्रे अधि तोशते । पुनानो घ्नन्नप स्रिध: ॥
स्वर रहित पद पाठएषः । कविः । अभिऽस्तुतः । पवित्रे । अधि । तोशते । पुनानः । घ्नन् । अप । स्रिधः ॥ ९.२७.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 27; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 17; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 17; मन्त्र » 1
विषय - अब उक्त परमात्मा की नाना शक्तियों को वर्णन करते हैं।
पदार्थ -
(एषः) यह परमात्मा (कविः) सर्वज्ञ है (अभिष्टुतः) सबको स्तुति के योग्य है (पवित्रे अधि) अन्तःकरण के मध्य में (तोशते) प्राप्त होता है (स्रिधः) दुराचारी शत्रुओं को (अपघ्नन्) नाश करता हुआ (पुनानः) सत्कर्मियों को पवित्र करता है ॥१॥
भावार्थ - परमात्मा दुष्टों का दमन करके सदाचारियों को उन्नतिशील बनाता है। उसके पाने के लिये अपने अन्तःकरण को पवित्र बनाना चाहिये। जो लोग अपने अन्तःकरण को पवित्र नहीं बनाते, वे उसको कदापि उपलब्ध नहीं कर सकते ॥१॥
इस भाष्य को एडिट करें