ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 4/ मन्त्र 10
र॒यिं न॑श्चि॒त्रम॒श्विन॒मिन्दो॑ वि॒श्वायु॒मा भ॑र । अथा॑ नो॒ वस्य॑सस्कृधि ॥
स्वर सहित पद पाठर॒यिम् । नः॒ । चि॒त्रम् । अ॒श्विन॑म् । इन्दो॒ इति॑ । वि॒श्वऽआ॑युम् । आ । भ॒र॒ । अथ॑ । नः॒ । वस्य॑सः । कृ॒धि॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
रयिं नश्चित्रमश्विनमिन्दो विश्वायुमा भर । अथा नो वस्यसस्कृधि ॥
स्वर रहित पद पाठरयिम् । नः । चित्रम् । अश्विनम् । इन्दो इति । विश्वऽआयुम् । आ । भर । अथ । नः । वस्यसः । कृधि ॥ ९.४.१०
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 4; मन्त्र » 10
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 23; मन्त्र » 5
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 23; मन्त्र » 5
पदार्थ -
(इन्दो) हे सर्वैश्वर्यसम्पन्न परमात्मन् ! (नः) हमको (चित्रम्) नाना प्रकार के (अश्विनम्) सर्वत्र व्याप्त होनेवाले ऐश्वर्य्यों से सम्पन्न करें (अथ) और (विश्वम् आयुम्) सब प्रकार की आयु से (रयिम्) धन से भरपूर करें ॥१०॥
भावार्थ - परमात्मा सत्कर्मों द्वारा जिन पुरुषों को ऐश्वर्य के पात्र समझता है, उनको सब ऐश्वर्यों से और ज्ञानादि गुणों से परिपूर्ण करता है ॥१०॥ चौथा सूक्त और तेइसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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