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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 51 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 51/ मन्त्र 1
    ऋषिः - उचथ्यः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    अध्व॑र्यो॒ अद्रि॑भिः सु॒तं सोमं॑ प॒वित्र॒ आ सृ॑ज । पु॒नी॒हीन्द्रा॑य॒ पात॑वे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अध्व॑र्यो॒ इति॑ । अद्रि॑ऽभिः । सु॒तम् । सोम॑म् । प॒वित्रे॑ । आ । सृ॒ज॒ । पु॒नी॒हि । इन्द्रा॑य । पात॑वे ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अध्वर्यो अद्रिभिः सुतं सोमं पवित्र आ सृज । पुनीहीन्द्राय पातवे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अध्वर्यो इति । अद्रिऽभिः । सुतम् । सोमम् । पवित्रे । आ । सृज । पुनीहि । इन्द्राय । पातवे ॥ ९.५१.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 51; मन्त्र » 1
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 8; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    (अध्वर्यो) हे अध्वर्यु लोगों ! (सोमम्) परमात्मा को (अद्रिभिः सुतः) अपनी इन्द्रियों द्वारा ज्ञान का विषय (सृज) करिये (इन्द्राय पातवे) और जीवात्मा की तृप्ति के लिये (पवित्रे पुनीहि) अपने अन्तःकरण को पवित्र करिये ॥१॥

    भावार्थ - परमात्मा की प्राप्ति के लिए अन्तःकरण का पवित्र होना अत्यावश्यक है, इसलिए प्रत्येक जिज्ञासु को चाहिये कि पहले अपने अन्तःकरण को पवित्र करे ॥१॥

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